Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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(८)-(९) अहीणक्खरं (अहीनाक्षर) तथा अणच्चक्खरं (अन्त्यक्षर)-हीन व अधिक अक्षर-दोषों से रहित सूत्र का उच्चारण करना। क्योंकि आगम पाठ का एक अक्षर कम होने पर वांछित अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता। उसी प्रकार उसमें अधिक अक्षर जोड़ देने पर अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। टीकाकार ने दो दृष्टान्त देकर इसे स्पष्ट किया हैहीनाक्षर दोष का उदाहरण
(१) राजगृह नगर में भगवान महावीर स्वामी का प्रवचन समाप्त होने पर जब श्रेणिक राजा मंत्री अभयकुमार के साथ अपने राजमहल को वापस लौटने वाले थे, तभी उन्होंने आकाश से नीचे गिरते और पुनः आकाश में उड़ते एक विद्याधर को देखा। भगवान महावीर से उन्होंने विद्याधर के बार-बार ऐसी चेष्टा करने का कारण पूछा तो उन्होंने फरमाया-“यह विद्याधर आकाशगामिनी विद्या की साधना कर रहा है, परन्तु यह अपनी साधना में विद्या का एक अक्षर भूल गया है। इसी कारण उसकी यह विद्या सिद्ध नहीं हो रही है और वह पंख कटे पक्षी की तरह आकाश में उड़कर वापस नीचे गिर जाता है।" महामंत्री अभयकुमार के पास पदानुसारिणी लब्धि थी। वे उस लब्धि के प्रभाव से किसी भी बात के एक पद (अक्षर) को सुनकर अन्य सभी अक्षरों (पदों) को जान लेने की शक्ति रखते थे। अतः भगवान की बात सुनते ही अभयकुमार तुरन्त उस विद्याधर के पास आये और बोले-"भाई विद्याधर ! यदि तुम मुझे यह आकाशगामिनी विद्या सुना दो तो मैं अपनी लब्धि के प्रभाव से तुम्हें विद्या के विस्मृत अक्षर को बता सकता हूँ।" इस पर विद्याधर अभयकुमार की बात पर सहमत हो गया। उसने अभयकुमार को अपनी आकाशगामिनी विद्या का मंत्र सुनाया। मंत्र सुनते ही पदानुसारिणी लब्धि के बल पर अभयकुमार ने मंत्र का विस्मृत अक्षर बता दिया। इस बार मंत्रोच्चारण के समय अक्षर पूर्ण होने से वह विद्याधर उक्त विद्या के प्रभाव से आकाश में निर्विघ्नतापूर्वक उड़ गया।
इस कथा से यह स्पष्ट है कि मंत्र में एक भी अक्षर कम हो तो ज्ञान लाभकारी नहीं होता है। जब भौतिक मंत्रों में भी एक अक्षर की न्यूनता क्षम्य या अभीष्ट नहीं है तो लोकोत्तर महामंत्र रूप शास्त्र-पाठ में एक भी अक्षर की हीनता कैसे क्षम्य हो सकती है ? अतः शास्त्र-पाठ हीनाक्षर युक्त नहीं होना चाहिए। अहीनाक्षर शास्त्र ही परम साध्य मोक्ष रूप फल को प्राप्त करा सकता है। (हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ४० मु. जं.) इस प्रसंग में विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८६४ में कहा है
विजाहररायगिहे उप्पप्पपडणं च हीणदोसेण। कहणो सरणागमणं पयाणुसारिस्स दाणं च॥ ( 34 )
The Discussion on Essentials
आवश्यक प्रकरण
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