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(३) सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाला संग्रह नय "सभी को एक ही आगमतः द्रव्य स्कन्ध मानता है। वह एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्य स्कन्ध और अनेक अनुपयुक्त आत्मायें अनेक आगमतः द्रव्य स्कन्ध" नैगम व्यवहार की इस मान्यता को स्वीकार नहीं करता ।
(3) According to Samgraha naya (generalized viewpoint) all non-contemplative souls fall into just one category of physical skandh with scriptural knowledge. It does not accept the Naigam concept that one non-contemplative soul is one Agamatah dravya skandh (physical skandh with scriptural knowledge) and many non-contemplative souls are many physical skandhs with scriptural knowledge.
(४) उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं णेच्छति ।
(४) ऋजुसूत्र नय से एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमतः द्रव्य स्कन्ध है । वह भेदों को स्वीकार नहीं करता है।
(4) According to Rijusutra naya (precisionistic viewpoint; viewpoint related to specific point or period of time) one non-contemplative soul is one Agamatah dravya skandh (physical skandh with scriptural knowledge). This viewpoint has no scope for variations or differences.
(५) तिन्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए कह अणुवत्ते भवति ?
सेतं आगमओ दव्वखंधे ।
(५) तीनों शब्द नय ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हो तो उसे अवस्तु-असत् मानते हैं । क्योंकि जो ज्ञायक है वह अनुपयुक्त नहीं होता है ।
यह आगमतः द्रव्य स्कन्ध का स्वरूप है ।
(5) According to the three Shabda nayas (Shabda naya, Samabhirudha naya and Evambhuta naya) or verbal viewpoints (verbal viewpoint, conventional viewpoint and etymological viewpoint) if a knower is devoid of faculty of contemplation he is unreal. This is because without the
स्कन्ध प्रकरण
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The Discussion on Skandh
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