Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ प्रज्ञापनासूत्रे पातादिरूपक्रियाविशेषान् प्ररूपयितुमाह- 'कइ णं भंते ! करियाओ पण्णत्ताओ?' हे भदन्त ! कति खलु क्रियाः कर्मबन्धकारणीभूतचेष्टाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम! 'पंच किरियाओ पण्णत्ताओ' प्रश्च क्रियाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा - काइया १, अहिगर णिया २, पाओसिया ३, पारियावणिया ४, पाणाइवाय किरिया ५, तद्यथा - कायिकी १, आधिकरणिकी २, प्राद्वेषिकी ३, पारितापनिकी ४, प्राणातिपातक्रिया ५, तत्र चीयते Sस्मिन् अयं वेति कायः शरीरं, काये भवा, कायेन निवृत्ता- निष्पादिता वा कायिकी क्रिया १, एवम् अधिक्रियते - संस्थाप्यते नारकतिर्यचादिषु आत्माऽनेनेति अधिकरणम्अनुष्ठान विशेषः, चक्रखङ्गादि बाह्य वस्तु वा तत्र भवा, तेन वा निर्वृत्ता अधिकरणिकी क्रिया २, प्रद्वेषो मत्सरः कर्मबन्धकारणम् अशुभो जीवपरिणाम, विशेषः, नारक आदि विभिन्न पर्यायों को प्राप्त जीवों की प्राणातिपात आदि क्रियाओं की प्ररूपणा की जाती है। श्री गौतमस्वामी - हे भगवन् ! क्रियाएँ अर्थात् कर्मबन्ध के कारणभूत जीव के व्यापार कितनी प्रकार की कहीं है ? श्री भगवन्- हे गौतम पांच क्रियाएँ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं (१) कायिकी (२) आधिकारणिकी (३) प्रद्वेषिकी (४) पारितापनिकी और ( ५ ) प्राणातिपात क्रिया । जो उपचित होता है अथवा जिसमें (हड्डी आदि में ) उपचित होता है वह काय अर्थात् शरीर । काय से उत्पन्न होने वाली क्रिया कायिकी क्रिया कहलाती है । जिसके कारण आत्मा नरक आदि में अधिकृत हो उसे अधिकरण कहते हैं । अधिकरण अनुष्ठान भी कहलाता है और चक्र या खड्ग आदि भी कहलाते हैं, जो हिसा के कारण हो । अधिकरण से होने वाली क्रिया अधिकारणीकी क्रिया है । प्रद्वेष का अर्थ हैं मत्सर या जीव का वह अशुभ परिणाम जो कर्मबंधका कारण हो ! उस प्रद्वेष से उत्पन्न હવે બાવીસમાં પદમાં નારક આદિ વિભિન્ન પર્યાચાને પ્રાપ્ત જીવાની પ્રાણાતિપાત આદિ ક્રિયાઓની પ્રરૂણા કરાય છે. શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! ક્રિયાએ અર્થાત્ કમ બન્ધના કારણે ભૂત જીવને વ્યાપાર કેટલા પ્રકારની કહી છે ? श्री भगवान्-हे गौतम! पांय शियाओ महेशी छे, ते या अरे छे (1) अयिडी (२) અધિકારીણિકી (3) પ્રાદ્ધેષિકી (૪) પારિતાપનિકી (૫) પ્રાણાતિપાતિકી ક્રિયા જે ઉપચિત થાય છે અથવા જેમાં (હાડકાંવિગેરેમાં) ઉપચિત વધારેા થાય છે, તે કાય અાત્ શરીર, કાયથી ઉત્પન્ન થનારી ક્રિયા કાયિકી ક્રિયા કહેવાય છે. જેના કારણે અત્મા નરકઆદિમાં અધિકૃત થાય, તેને અધિકરણ કહે છે. અધિકરણ અનુષ્ઠાન પણ કહેવાય છે અને ચક્ર અગર ખડ્રેગ આદિ પણ કહેવાય છે, જે હિ’સાના કારણુ હેાય છે. અધિકરણથી થનારી ક્રિયા આધિકારણિકી ક્રિયા છે. પ્રદ્વેષના અર્થ છે મત્સર અગર જીવનું તે અશુભ પરિણામ ४ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫

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