Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे तद्यथा-कायिकी १. आधिकरणिकी २, प्राद्वेषिकी ३, पारितापनिकी ४, प्राणातिपातक्रिया ५, कायिकी खल भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-अनुपरतकायिकी च दुष्प्रयुक्तकायिकी च, आधिकरणिकी खलु भदन्त ! क्रिया कति विधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-स योजनाधिकरणिकी च निर्वर्तनाधिकरणिकी च, प्राद्वेपिकी खलु भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-येन आत्मनो वा परस्य वा तदुभयस्य वा अशुभं मनः संप्रधारयति, सा एषा प्राद्वेषिकी क्रिया, पारितापनिकी खलु भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? कहीं है? (गोयमा! पंचकिरियाओ पण्णत्ताओ) पांच क्रियाएँ कही है (तं जहा-काइया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया) वे इस प्रकार कायिकी, अधिकरणिकी प्राद्वेषिकी पारितापतिकी और. प्राणातिपातिकी
(काइया णं भंते! किरिया कइविहा पण्णत्ता?) हेभगवन् ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकारकी कही है (तं जहा अणुवरयकाइया य दुप्पउत्तकाइया य) अनुपरत कायिकी क्रिया और द्रष्प्रयुक्त कायिकी क्रिया)
(अहिगरणिया ण भंते किरिया कइविहा पण्णत्ता ?) हेभगवन् ! अधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकारकी कही है? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता)हे गौतम ! दो प्रकारकी कही है !(तं जहा संजोयणा हिगराणीया य निव्वत्तणाहिगराणिया य) वह इस प्रकार संयोजनाधिकरणिकी और नर्वर्तनाधिकरणिकी (पाओसियाणं भंते ! किरिया कइ बिहा पण्णता ?) हे भगवन् ! प्राद्वेविकी क्रिया कितने प्रकारकी कही है ? (गोयमा तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम तीन प्रकारकी कही है !(तं जहा-जेणं) जिसके -द्वारा (अप्पणोवा) अपने लिए (परस्स वा) अथवा दूसरे के लिए (तदुभयस्स वा) (गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ) पांय ठियायो ४हीछे (तं जहा-काइया, अहिगरणिया, पाओसिया पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया) तेथे मा प्रारे-विही, मधि४२णिही प्राषिक्षी, પારિતાપનિકી, અને પ્રાણાતિપાતિકી
(काइया णं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता!) हे भगवन् ! यिजीयाटमारनी ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) गौतम! मे प्रा२नी ४९ली छ (तं जहा-अणुवरय काइया य दुप्पउत्तकाइया य) અનુપરત કાયિકી ક્રિયા અને દુપ્રયુક્ત કાયિકી ક્રિયા
(अहिगरणिया णं भंते ! किरिया कइविहा पष्णत्ता ?) हे भगवन् ! मा५४२शियाटसा प्री२नी 3डी छ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) गौतम मे प्रा२नी ही छ (तं जहा-संजोयणाहिगरणिया य निव्वत्तणाहिगरणिया य) ते २॥ २ सयोनाधिीि मने नियतनाधिलिली
(पाओसियाणं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता ?) मापन ! प्राषिजीठिया या प्रजानी उडी छ? (गोयमा ! तिविहा पणत्ता) तम! त्राण प्रा२नी ४ही छे (तं जहा-जेणं) रेना द्वारा (अप्पणो वा) पाताने माटे (परस्स वा) मया मीना मारे (तदुभयस्स वा) अथवा मन्नेना भाटे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫