Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्बे निर्गच्छति, धर्मकथां श्रुत्वा प्रतिगता पर्पत् , ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः पाञ्जलिपुटः पर्युपासीनः, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'दो भंते ! परमाणु पोग्गला एगयओ साहन्नंति, एगयओ साहणित्ता किं भवइ ?' हे भदन्त ! दो परमाणुपुद्गलौ, एकता-एकतया संहन्येते-संहतौ भवतः संघीभूतौ भवतः इत्यर्थः, एकतः-एकतया संहत्य-संहतो भूत्वा, किं भवति ? किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! दुप्पएसिए खंधे भवइ' हे गौतम! द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकत्वेन संहत्य-मिलित्वा, द्विपदेशिका-द्वौ प्रदेशौ अवयवौ यस्य स तथाविधः स्कन्धो भवति, ‘से भिज्जमाणे दुडा कजइ, एगयो परमाणुपोग्गले एगयओ परमाणुपोग्गले भवई' सद्विप्रदेशिकः स्कन्धो, भिद्यमानो द्विधा-द्विभागः में महावीर स्वामी पधारे, धर्मकथा सुनने के लिये परिषद निकली और धर्मकथा सुनकर वह अपने २ स्थान पर गई। इतने में प्रश्न पूछने की अभिलाषा वाले गौतम ने बड़े विनय से दोनों हाथ जोड़कर प्रभु से इस प्रकार पूछा 'दो भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओसाहन्नति, एगयओ साहणित्ता किं भवइ' भदन्त ! दो पुद्गल परमाणु जब आपस में सङ्घीभूत होते हैं, तब क्या होता है-अर्थात् आपस में सङ्घीभूत (मिले हुए) दो पुद्गल परमाणु किस चीज उत्पन्न करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-' गोयमा' हे गौतम! 'दुप्पएसिए खंधे भव' दिप्रदेशी-दो हैं प्रदेश-अवयव जिसके ऐसा एक स्कंध उनकी संघीभूत अवस्था में उत्पन्न होता है । ' से भिजमाणे दुहा कजइ, एगयो परमाणुपोग्गले एगयओं परमाणुपोग्गले भवइ' जय यह द्विप्रदेशी स्कन्ध दो भाग रूप
"रायगिहे जाव एव वयासी " PIMP नगरमा महावीर प्रभु पयार्या તેમને વંદણાનમસ્કાર કરવાને માટે જનસમૂહ નીકળી પડયે વંદણાનમસ્કાર કરીને તથા ધર્મકથા સાંભળીને પરિષદુ વિસતિ થઈ ત્યાર બાદ ધર્મતત્વને શ્રવણું કરવાની અભિલાષાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ વિનયપૂર્વક બને હાથ नसन श्रम लगवान महावीरने मा प्रमाणे प्रश्न पूछ्यो-“दो भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति एगयओ साहणित्ता कि भवइ १" पन् ।
જ્યારે બે પુલ પરમાણુઓને એક બીજાની સાથે સંગ થાય છે ત્યારે શું થાય છે-એટલે કે તેમના સંગથી કઈ ચીજ ઉત્પન્ન થાય છે?
भावीर प्रसुन उत्तर- “गोयमा!" गौतम!" दप्पयसिप खंधे भव" पुरस५२मारा माना ५२२५२ना सयोगने सीधे दिशा ( प्रश. पाण। सय में भयाणा) मे २४५ Gत्पन्न य जय “से भिज्जमाणे दुहा कज्जइ, एगयओ परमाणुपाग्गले एगयो परमाणुपोग्गले भव"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦