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नव पदार्थ
३. भगवती सूत्र के बीसवें शतक के द्वितीय उद्देशक में जिनेश्वर भगवान ने जीव के गुणानुरूप तेईस नाम बतलाए हैं, जो निम्न प्रकार हैं
४. जीव : जीव का यह नाम आयुष्य के बल से जीवित रहने के कारण है। यह संसारी जीव-भाव जीव है। बुद्धिमान विचार कर देखें।
५. जीवास्तिकाय : जीव का यह नाम देह धारण करने से है। प्रदेशों का जो समूह है, वह काय है। देह पुद्गल-प्रदेशों का समूह है। उसे यह धारण करता है।
६. प्राण : जीव का 'प्राण' नाम श्वासोच्छ्वास लेने के कारण है। __ भूत : जीव को 'भूत' इसलिए कहा गया है कि यह तीनों काल में विद्यमान रहता
७. सत्त्व : जीव स्वयं शुभाशुभ का कारण है, इसलिए जीव 'सत्त्व' है।
विज्ञ : इन्द्रियों के शब्दादि विषयों का ज्ञान करने वाला (जानने वाला) होने से 'विज्ञ' है।
८. वेद : जीव का नाम 'वेदक' है। जीव स्थान-स्थान पर सुख-दुःख का अनुभव करता है। वह जीव चैतन्य स्वरूप है और सदा पुद्गल का स्वादी-उपभोग करने वाला है।
९. चेता : जीव पुद्गलों की रचना (चय) करता है। पुद्गलों का चय कर वह विविध प्रकार के अच्छे-बुरे रूप धारण करता है। इससे जीव का नाम 'चेता' है।
१०. जेता : कर्म रूपी शत्रुओं को जीतने वाला होने से जीव का यह उत्तम 'जेता' नाम है, जीव का पराक्रम उसकी शक्ति (वीर्य) अनन्त है, जिससे अल्प में ही वह कर्मों का अन्त कर देता है।
११. आत्मा : यह नाम इसलिए है कि जीव ने जगह-जगह जन्म-मरण किया है और सर्वलोक का स्पर्श किया है। किसी भी जगह इसे विश्राम नहीं मिला।