Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 7
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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सरियाम अभिधानराजेन्द्रः।
सूरियाभ मर्थः-यस्मात् कृष्णा छाया-आकारः सर्वाविसंवादितया मणहरा करणमणनिव्वुइकरा सदा सध्यभो समंता - तेषां तस्मात् कृष्णाः, एतदुक्तं भवति-सर्वाविसंवादित
भिनिस्सवंति, भवेयारूके सिया १, णो इणद्वे समढ, से या तत्र कृष्ण श्राकार उपलभ्यते, न च भ्रान्तावभाससंपा
जहानाम' किन्नराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा दितसत्ताका सर्वाविसंवादीभवति, ततस्तत्ववृत्त्या ते कृष्णा न भ्रान्तावभासमात्रध्यवस्थापिता इति , एवं नीला
गंधवार वा भद्दसाल गयाग वा नंदणवणगयाण नीलच्छाया इत्याद्यपि भावनीयं , नवरं शीताः शीतच्छा- वा सोमबसवणगयाण व पंडगवण गयाण वा हिमवंत-- या इत्यत्र छायाशब्द आतपप्रतिपक्षवस्तुवाची द्रष्टव्यः, 'घ
गच्छंगयमलयमंदरगिरिगुहासमभागयाण वा एगो सनकडितडियच्छाया' इति इह शरीरस्य मध्यभागे क
निहियाणं समागयाणं सन्निसन्नाणं समुवबिट्ठाणं पमुइटिस्ततोऽन्यस्यापि मध्यभागः कटिरिव कटिरित्युच्यतेकटिस्तटमिव कटितटं घना-अन्योऽन्यशास्त्राप्रशाखानु
यपक्कीलियाणं गीयरइगंधवहसियमणाणं गज्जं पज्जं प्रवेशतो निविडा कटितटे-मध्यभागे छाया येषां ते तथा, कत्थं गेयं पयबद्धं पायबद्धं उक्खित्तायपयत्तायं मंदावं मध्यभागे निविडतरच्छाया इत्यर्थः, अत एव रम्यो-र- रोइयावसाणं सत्तसरसमन्नागयं छद्दोसविप्पमुकं एकारमणीयः तथा महान् जलभारायनतप्रावृट्कालभावी यो मे- सालंकारं अट्ठगुणोववेयं गुंजंतवैसकुहरोवगूढं रत्तं तिट्ठाघनिकुरुम्बो-मेघसमूहस्तं भूता-गुणैः प्राप्ता महामंघनिकुरुम्बभूताः महामेघवृन्दोपमा इत्यर्थः। ते ण पायवा'
णकरणसुद्धं सडहरगुंजंतवंसतंतीतलताललयगहसुसंपउस इत्यादि , अशोकवरपादपपरिवारभूतप्रागुक्ततिलकादिवृक्ष- महुरं समं सुल लयमणोहरं मउयांभियपयसंचारं सुणति वर्णनवत् परिभाषनीय , नवरं 'सुयबरहिणमयणसलागा, वरचारुरूवं दिव्यं णटुं सज्जं गेयं पगीयाणं, भवेयारूचे इत्यादि विशेषणमत्रोपमया भावनीयम् , 'अणेगसगडरह
सिया ?, हंता सिया । (सू० ३१ )। जाणे' त्यादि तदाकारभावतः। तेसिं णं वणसंडागं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा
नेसि ण वणमंडाणं तत्थ तत्थ तहि तहिं देसे देसे पएणत्ता , से जहानामए आलिंगपुक्खरेति वा जात्र
बहूओ खुड्डाखुड्डियातो वावियाश्रो पुक्खरिणीओ दीहिणाणाविहपंचवएणेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिया,
याओ गुंजालियाओ सरपंतिाओ विलपंतिआश्रो अ
च्छाओ सएहाश्रो रययामयकूलाओ समतीरातो वयरातेसिं गं गंधो फासो णेयव्वो जहक्कम , तेसि णं भंते !
मयपासाणातो तवणिज्जतलाओ सुवरणसुम्भरययवालुतखाण य मणीण य पुवावरदाहिणुत्तरातेहिं वातेहिं
यामो वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडामो सुनोमंदाणं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं चालियाणं फंदि
यारसुउत्तारानो णाणामणिसुबद्धाश्रो चउकोणाश्रो याणं घट्टियाणं खोभियाणं उदीरियाणं केरिसए सद्दे
आणुपुव्वसुजातगंभीरसीयलजलाओ संछनपत्तभिसमुभवति ?, गोयमा! से जहानामए सीयाए वा संदमा
णालाओ बहुउप्पलकुमुयनलिणसुभगसोगंधियपोंडरीयणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंट
सयवत्तसहस्सपत्तकेसरफुल्लोवचियाश्रो छप्पयपस्भुिज्जमास्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखि
णकमलाओ अच्छविमलसलिलपुरणाओ अप्पेगइयाओ खिणिहेमजालपरिक्खित्तस्स हेमवयचित्ततिणिसकणगणि- पासवोयगाो अप्पेगइयाओखोरोयगाओ अप्पेगतियातो ज्जुत्तदारुयायस्स संपिनद्धचक्कमंडलधुरागस्स कालायस- घोयगा. अप्पे० खीरोय०अप्पे०खारोय०अप्पेगइयाओ सुकयणेमिजंतकम्मस्स आइमवरतुरगसुसंपउत्तस्स कु- उयगरसेण पएणत्ताओ पासादीयाओ दरिसणिसलणरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियस्स सरसयबत्तीसतोणप- ज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाश्रो, तासिणं वावीणं रिमंडियस्स सकंकडावयंसगस्स सचावसरपहरणावरण- जाव बिलपंतीणं पत्तेयं२ चउद्दिसिं चत्तारि तिसोपाणभरियजुज्झसजस्स रायंगणंसि वा रायंतेउरंसि वा र- पडिरूवमा पएणत्ता, तेसि णं तिसोपाणपडिरूवगाणं मंसि वा मणिकुट्टिमतलंसि अभिक्खणं अभिघट्विज-! वनमओ, तोरणा झया छत्ताइछत्ता य णेयच्या, तासु माणस्स वा नियट्टिजमाणस्स वा पोरालमणुगणा - णं खुड्डाखुडियासु बावीसु जाव बिलपंतियासु तत्थ तत्थ समणनिव्वुइकरा सद्दा सव्वश्रो समंता अभिणिस्सवंति, देसेर बहवे उपायपचयगा नियइपध्वयगा जगइपव्वयगा भवेयारूचे सिया ?, णो इणड्डे समद्वे, से जहाणामए दारुइजपव्ययगा दगमंडवा दगणालगा दगमंचगा उसडा वेयालीयवीणाए उत्तरमंदामुच्छियाए अके सुपइट्ठियाए | खुडखुड्डगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सम्वरयणामया अकुसलनरनारिसुसंपरिग्गहियाते चंदणकोणपरियट्टियाए च्छा जाव पडिरूवा, तेसु ण उप्पायपव्वएसु जाव पपुव्वरत्तापरत्तकालसमयंसि मंदायरवेइयाए पवेइयाए चा- खंदोलएसु बहूइं हंसासणाई कोंचासणाई गरुलासणाई लियाए घट्टियाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणुम्मा उएणयासणाई पणयासणाई दीहासणाई पक्खासणाई
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