Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 7
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1145
________________ सूरियाभ अभिधानराजेन्द्रः। सूरियाभ यणामई अच्छायणे , साणं पउमवरवेइया एगमेगेणं मेतद्रपो वर्णावासो-वर्णः-श्लाघा यथावस्थितस्वरूपकीतहेमजालेणं गवक्खजालेणं खिखिणीजालेणं घंटाजालेणं नं तस्यावासो-निवासो ग्रन्थपद्धनिरूपो वर्णावासो; वर्णकमुत्ताजालेणं मणिजालेणं कणगजालेणं रयणजालेणं निवेश इत्यर्थः , प्रज्ञप्तो मया शेषतीर्थकरैश्च , तद्यथेत्यादिना तमेव दर्शयति-इह सूत्रपुस्तकेष्वन्यथाऽतिदेशबहुलः पाठो पउमजालेणं सम्बतो समंता संपरिक्खित्ता, ते ण दामा पश्यते ततो मा भून्मतिसमाह इति विनेयजनानुग्रहाय पाठ तवणिज समा जाव चिट्ठति । तीसे ण पउमवरवेइ- उपदयते-'चयरामया णिम्मा रिट्टामया पाहाणा वेसलियाए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे हयमंघाडा जाव यामया खंभा सुवनरुपमया फलया लोहियक्षमईमो - उसभसंघाडा सम्धरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा श्रो यारामया सधीमानामणिमया कडेवरा हाणामणिमया कंडयरसंघाडा नानामणिमया रुया मानामणिमया रूपसंपासादीया ४ ०जाव वाहीतो पंतीतो मिहुणाणि लयायो। घाडा अंकामया पक्खा अंकामया पक्वबाहाम्रो जोईरसामसे केणड्डेणं भंते ! एवं वुश्चति-पउमवरवेश्या ? , गो- या बंसा धंसकयेस्तुपया रहयामश्रिो पष्टियानो जायरूमई यमा! पउमवरवेश्या णं तत्थ तरथ देसे २ तहिं २ वेड्यासु मोहाइली चयरामी उपरिपुंछणी सम्बरयणामए माच्छाय पतत् सबैबारबत् भावनीय , नवरं कलेवगणि-मनुष्यशबेड्यावाहामु य बेहयफलतेसु य वेदयपुडतरेसु य खंभेसु रीराणि कलेवरसंघाटा-मनुष्यशरीरयुग्मानि कपाणि-रूपखंभवाहासु खमसीलेसु खंभपुडंतरेसु सूयीसुसूीएखेसु काणि रूपसंघाटा-रूपकयुग्मानि, 'सासं पउमवरयेश्या ईफलएसु सर्वपुडतरेसु पक्खेसु पक्खयाहासु पक्खपे- तस्थर से २ एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गयाखजालेणं. रंतेसु परखपुडंतरेसु पहुयाई उप्पलाई पउमाईसयाई एगमेगेणं घंटाजालेणं पगमेगेणं सिलिणाजालेणं एगमेगणं मुत्ताजालेण एगमेगेणं कणगजालणं एगमेगेणं मणिजालेणं णलिणाति सुभगाई सोगंधियाई पुंडरीयाई महापुरी । पगमेगेणं र ययजालेणं एगमेगेण सम्बरयणजालेणं एगमेगेण या सयवत्ता सहस्सवत्ताई सध्यरयणामयाई अच्छाई उमजालणं सम्यती समता संपरिक्खित्ता,ते णं जाला तषपडिरूबाई महया वासिकयछत्तसमाणाई पमताई सम- जलंधूसगा सुषमपयरमंडिया नानामणिरयणविधिहहारहाउसो!,से एएणं प्रदेणं गोयमा ! एवं बुचा-चहारउवसोभियसमुद्रयरूया इसिमममममसंपत्ता पुग्यायपउमवरवेझ्या । पउमवरवेझ्या णं भंते ! किं सास-राहणुत्तरागपाहि यापाह मदाय मदायमेइज्जमाणा पाज 1 माणा पलंयमाणा २ पझुंझमाणा पझंझमाणा भोरालेण मणुयाकिं प०१, गोयमा! सिय,सासया मिय प्रसासया से यात नेणं मणहरेणं करणमणणिधुइकरेणं सहेणं ते पदेसे सबकेणदेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सास सिय प्रसास- तो समंता प्रापरमाणा सिरीए उबसोभमाणा चिटुंति , ती. या ?, गोयमा ! दबट्ठयाए सासमा, पञ्जवेहिं - से पउमवरवेड्याए तत्थ २ देसे तहिं २ हयसंघाडा नरसंघाघपलबेहि रसपञ्जवहिं फासपञ्जवेहिं प्रसासया से ख- डा किंनरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधमत्रदुणं गोयमा! एवं वुचति-सिय सासया सिय प्रसास संघाडा. उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाय पडिरू वा , एवं पंतिमो वि धीहियो वि मिहुणाई, तीसे णं पउमबरया। पउमवरवेइया ण भंते ! कालो केव चिर होइ?, घड्याए तत्थ २ देसे तहिं २ बहुयाओ पउमलयात्रो णागलगोयमा !ण कयावि णासि ण कयावि गस्थि न क यात्रो असोगलयाओ चंपगलयानो वणलयाओ वासंतिययावि न भविस्सह, मुवि च हवइ य भविस्सइ य , लयायो अरमुसगलयानो कुंदलयात्री सामलयात्री निच्चं धुवा णिइया सासया अक्खया अव्यया अवट्ठिया णिच्या कुसुमियाभो नि मउलियामोनिश्च लवड्याभोच्चि थवपउमवरवेइया । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई च यात्रो णिच्च गुलइयाश्रो निच्चं गोछियाप्रोणिकचं जमकवालविक्खंभेणं उबयारियालेणसमे परिक्खेवणं , व लियाश्री निरचं जुयलियाओ निच्चं विणमियाश्री निरमं प. णमियाओ निचं सुविभत्ताडिमंजरीवडिंसगधरीश्रा निसचं पसंडवलतो भाणितब्यो जाब विहरं ते । तस्स णं उव-- कुसुमियमउलियलवइयथवइयगुलायगोच्छियजमलियजुययारियालेणस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा प- लियायणमियपणमियसुविभत्तपडिमंजरिवसिगधरीोसएणत्ता वसो, तोरणा झया छत्ताइच्छत्ता , तस्स णं व्यरयणमईयो अच्छाभोव्जाव पडिरूबानो इति.अस्य व्याउवयारियालयणस्स उवारे बहसमरमणिले भूमिभागे ख्या-'सा' एवंस्वरूपा'ण' मिति वाक्यालकारे पनवरये दिका तत्र २ प्रदेशे एकेकेन हेमजालेन--सर्यात्मना हेममयेन पाने जाव मणीणं फासो । (५०-३४) लम्बमानेन दामसमूहेन एकैकेन गवाक्षजालेन-गवाक्षाकतब एकया पनवरयेदिकया एकेन वनखण्डेन सर्वतः-स- तिरत्नविशेषदामसमूहेन पकैकेन किरिणीजालेन , किड़िआंसु विशु समन्ततः-सामस्स्येन सम्यग् परिक्षिप्त सा एयः-बुद्रास्टकाः, एकैकेन घण्टाजालेन-किङ्किरावपेक्षयापउमयरवेड्या' इत्यादि. सा पद्मवरयेदिका अर्द्ध योजनमू- किंचिन्महत्यो घण्टा-घण्टाः, तथा एकैकन मुक्काजालेन-मुध्वमुश्चैस्त्वेन पश्च धनुःशतानि विष्कम्भतः परिक्षेपण उप- क्लाफलमयेन वामसमूहेन एकैकेन मणिजालन-मणिमयेनदाकारिकालयनसमाना-उपकारिकालयनपरिक्षेपपरिमाणाप्र- मसमूहेन एकैकन कनकजालेन-कनकः-पीतरूपः सुवर्णषिबप्ता, 'तीसे ण 'मित्यादि, तस्याः - पद्मवरवदिकाया अय-| शेषः तन्मयेन दामसमूहेन एवमेकैकेन रतजालेन पकैकेन पत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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