Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 11
________________ सन्दरहित होता है (109) । शब्द की उत्पत्ति स्कन्धो के परस्पर टकराने से होती है (111)। आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार प्रत्येक परमाणु चार गुण वाला होता है । इन परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के सयोगो मे नानाविध पदार्थ बन जाते है (110)। अत पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारो तत्व विभिन्न प्रकार के परमाणुओ से निर्मित नहीं हैं अपितु एक ही प्रकार के परमाणुओं से उत्पन्न है । यहाँ यह वात भ्यान देने योग्य है कि प्रत्येक परमाणु मे पाच रसो (तीता, खट्टा, कडवा, मीठा और कसला) मे में काई एक रस, पाच रूपो (काला, नीला, पीला, सफेद और लाल) मे ने कोई एक स्प, दो गन्धो (सुगन्ध और दुर्गन्ध) मे से कोई एक गन्ध, बार पशों, (रुक्ष, स्निग्ध, शीत और उष्ण) मे से कोई दो अविरोधी स्पर्श होते है (112)। परमाणु या तो रूक्ष-शीत या स्क्ष-ऊष्ण या स्निग्ध-शीत या स्निग्धउष्ण होता है । कोमल, कठोर, भारी और हल्का ये चार स्पर्श स्कन्ध अवस्था मे ही उत्पन्न होते है। यहा यह प्रश्न उपस्थित होता है कि परमाणुप्रो मे वन्ध किस प्रकार होता है ? उसके उत्तर में प्राचार्य कुन्दकुन्द का कथन है कि परमाणु के परस्पर बन्ध का कारण स्निग्धता और क्षता है । स्निग्ध-गुण और रुक्ष गुण के अनन्त अश है। जिस प्रकार वकरी, गाय, मैम और ऊँट के दूध तथा घी मे उत्तरोत्तर अधिक रूप मे स्निग्ध-गुण, रहता है और धूल, वाल तथा वजरी आदि मे उत्तरोत्तर अधिक प मे मक्ष गुण रहता है उमी प्रकार मे परमाणुप्रो मे भी स्निग्ध और रुक्ष गुणो के न्यूनाधिक अशो का अनुमान होता है। परमाणुमो का परस्पर वन्ध कुछ नियमो के अनुसार माना गया है । जो परमाणु स्निग्यता और रूक्षता गुण में निम्नतम है उसका बन्ध किसी भी परमाणु में नही होता । इसके अतिरिक्त जिन परमाणुप्रो मे स्निग्धता और रूक्षता के ममान अश है उनका भी किमी भी दूसरे परमाणु से वन्ध नही होता। परन्तु जिनमे स्निग्धता और ममता के अश दूसरे परमाणुओ से दो अधिक हो उनमे यापम मे बन्ध होता है जैसे दो अश वाले का चार अश वाले से, चार का छ अश वाले मे, इसी प्रकार तीन का पाच अश वाले से, पाच का सात अश वाले से, इसी तरह आगे भी जानना चाहिये (117,118) । यहा यह बात स्मरणीय है कि अधिक गुणवाला परमाणु अल्प गुणवाले परमाणु को अपने रूप में परिवर्तित कर लेता है । इस तरह परमाणुनो मे सयोग-मात्र ही नही होता वरन् उनमे परम्पर एकरूपत्व स्थापित हो जाता है ।

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