Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 9
________________ 'भावात्मक और क्रियात्मक रूप से प्रकट होता है । अत हम कह सकते हैं कि जहां चैतन्य है वहा ज्ञान है, भाव है और क्रिया है । ज्ञान या चेतना आत्मा का ग्रागन्तुक धर्म नही है किन्तु स्वभाव / स्वाभाविक धर्म है ( 53, 54 ) । श्रात्मा ज्ञान होने के साथ-साथ कर्ता और भोक्ता भी है । श्रात्मा ससार अवस्था मे अपने शुभ-अशुभ कर्मों का कर्ता है और उनके फलस्वरूप उत्पन्न सुख-दुख का भोक्ता भी है (20) । मुक्त अवस्था में आत्मा अनन्तज्ञान का स्वामी होता है, शुभ-अशुभ से परे शुद्ध त्रिया का ( राग-द्वेष-रहित क्रियाओ का ) कर्ता होता है और अनन्त श्रानन्द का भोक्ता होता है । प्राचार्य कुन्दकुन्द जीव को स्वदेह परिमाण स्वीकार करते है । जिस प्रकार दूध मे डाली हुई पद्मरागमरिण (लालमणि) उसे अपने रंग से प्रकाशित कर देती है, उसी प्रकार देह मे रहनेवाला जीव भी अपनी देहमात्र को प्रकाशित करता हं श्रर्थात् वह स्वदेह मे ही व्याप्त होता है, देह से बाहर नही (35) । प्राचार्य कुन्दकुन्द की मान्यता है कि ससारी आत्मा अनादिकाल से कर्मों से बद्ध है । इसी कारण प्रत्येक ममारी जीव जन्म-मरण के चक्कर मे पडा रहता है । इतना होते हुए भी प्रत्येक मसारी श्रात्मा वस्तुत सिद्ध समान है ( 23 ) । दोनो मे भेद केवल कर्मों के बन्धन का है । यदि कर्मों जाय तो श्रात्मा का सिद्ध-स्वरूप जो प्रनन्त ज्ञान, सुख हो जाता है । के वन्धन को हटा दिया र शक्ति रूप है, प्रकट प्राचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार जीव को प्रभु ( अपने विकास मे समर्थ) कहा गया है (20) इसका अभिप्राय यह है कि जीव स्वय ही अपने उत्थान व पतन का उत्तरदायी है । वही अपना शत्रु है और वही अपना मित्र । वन्धन और मुक्ति उमी के प्राश्रित है | अज्ञानी से ज्ञानी होने का और वद्ध से मुक्त होने का सामर्थ्य उमी में है, वह सामर्थ्यं कही बाहर से नही आता, वह तो उसके प्रयास से ही प्रकट होता है । प्राचार्य कुन्दकुन्द ने जीवो का वर्गीकरण दो दृष्टिकोण से किया है(1) मामारिक और (2) श्राव्यात्मिक । सासारिक दृष्टिकोण से जीवो का वर्गीकरण इन्द्रियो की अपेक्षा से किया गया है (29 से 34 ) | सबसे निम्न स्तर पर एक इन्द्रिय जीव हैं जिनके केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय ही है । वनस्पति वर्ग एक न्द्रिय जीवो का उदाहरण है । इनमे चेतना मवसे कम विकसित होती है । इनमे उच्चस्तर के जीवों में दो से पाच इन्द्रियो तक के जीव है। सीपी, शख, बिना पैरो के (vi)Page Navigation
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