Book Title: Aacharya Kundakunda Dravyavichar Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 7
________________ से पृथक् उसके पीलेपन आदि गुणो का तथा कुण्डल आदि पर्यायो का अस्तित्व नम्भव नही है । अत यह स्पप्ट है कि जो नित्यरूप से द्रव्य मे पाया जाय वह गुण है और जो परिवर्तनशील है वह पर्याय है । सक्षेप मे, पर्याय परिणमनशील होती है और गुण नित्य । इसके अतिरिक्त गुण वस्तु मे एक साथ ही विद्यमान रहते है किन्तु पर्याएं क्रमश उत्पन्न होती हैं । वस्तु के विभिन्न आकारो को व्यजन पर्याय कहा गया है । उदाहरणार्थ-जीव का मनुष्य, देव आदि विभिन्न योनियो में जन्म लेना जीव की व्यजन पर्याए है। पर्याय का एक दूसरा भेद और है जिसे अर्थ पर्याय कहा गया है । बात यह है कि वस्तु के गुणो की अवम्याग्रो में प्रत्येक क्षण परिवर्तन होता रहता है, जैसे-जड वस्तु मे रूप प्रादि गुण तो मदेव विद्यमान रहते है, किन्तु इन गुणो की अवस्थाएं परिवर्तित होती रहती है । इमी के फलस्वरूप यह कहा जाता है कि वस्तु नई से पुरानी हो गई, मीठी मे खट्टी हो गई इत्यादि । यहा वस्तु मे रूप, रस आदि का लोप नही हुआ किन्तु उनकी अवस्थाएं बदल गई । परिवर्तन का यह क्रम अनन्त है। इस प्रकार के परिवर्तन को अर्थ पर्याय कहा गया है । अत वस्तु मे व्यजन पर्याय और अर्थ पर्याय दोनो ही सदा उपस्थित रहती है। यहा यह स्मरण रखना चाहिये कि द्रव्य का गुण-पर्याय-वाला होना द्रव्य को नित्य-अनित्य या परिणामीनिन्य मिद्ध करता है । द्रव्य गुण-अपेक्षा नित्य है और पर्याय-अपेक्षा अनित्य या परिणामी। द्रव्य को एक दूमरी परिभाषा भी प्राचार्य कुन्दकुन्द ने दी है जो उपर्युक्त परिभाषा मे तत्वत भिन्न नही है । उसके अनुमार द्रव्य वह है जो सत् है और मत उम नहते है जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-युक्त हो (139)। अर्थात् जिसमे उत्पनि, विनाण और स्थिरता एक समय में पाई जावे वह सत् है। उदाहरणार्थस्वर्ण के ककण मे जब कुण्डल बनाये जाते है तो कुण्डल पर्याय की उत्पत्ति, ककण पर्याय का विनाश और पीले प्रादि गुणोवाले स्वर्ण की स्थिरता एक समय मे प्टिगोचर होती है। यह उदाहरण व्यजन पर्याय का है। द्रव्य का उत्पाद, व्यय और धोव्यात्मक लक्षण अथं पर्यायवाले उदाहरण मे भी घटित होता है जैसेदही मीठे से पट्टा हुआ तो रस गुण की मोठी पर्याय का व्यय (विनाश) हुना, बट्टी पर्याय का उत्पाद (उत्पत्ति) हुआ और दही की ध्रौव्यता (स्थिरता) ज्यो की त्यो रही । इस तरह से उत्पत्ति और विनाश पर्यायाश्रित है और स्थिरता गुणाश्रित । अत हम कह सकते है कि द्रव्य की ये विभिन्न परिभाषाए इस बात की द्योतक है कि द्रव्य नित्यानित्यात्मक या परिणामी-नित्य है। प्रव्य के छ भेद है-(1) जीव, (2) पुद्गल, (3) धर्म, (4) अधर्म,Page Navigation
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