Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यशस्विचम्पूकाव्ये
शेषं पुष्करेषु मन्दराचलं शरीरेषु महापणाः कोशकटस्त्रोतस्सु सूर्य लोचनेषु तारामचं विम्बुषु च मखेषु पथ पराविपरोहणप्रणिधिभिः, बिसतन्तुवत् प्रतिनलिकैः वीरणप्ररोह वत्पर्य स्ववाहरिः, वातानत्रम्मचितवनैः प्रमदिवालास्तम्भैः घृणाला समितितार्गणैः कुमुदकाण्डवदुन्मूक्तिमिवाचे मुखपटाभोगवचगणितकरेणुभिः परमाणुच्छोचनगोपादपि दूरतरसंचरणारैः कर्मतालपवनपरिक्षिप्तदिगन्त धनसंपैः, गगनात्राभोरकृषितकर सूत्कारकम्पितमइकोकैः पशुप्रमाथोन्मथितमार्तण्डमण्ड पोपदेदिमसनभोभागः, बहावगाहकालिदेवते कामदारविहारविशासित बनदेवीसंदोहे, कि वेगवीथीपरिमाणैः शाम्या समप्रमासैरिव सकलागयतमानेतुं प्रवृतिः सामर्थः सह चिक्रीड |
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शरीरों पर सुमेरुपर्वत को, और लिङ्गमहानादयों को धारण करते हुए ही मानों नक्षत्र-मंडल को एवं नखों में चन्द्रमा को ने द्वारा महावतों के वचन प्रयोग
इसीप्रकार जो शुण्डा दण्डों पर नागराज ( शेषनाग ) को, (जननेन्द्रिय) छिड़ों एवं गण्डस्थल प्रवाहों में गङ्गा व यमुना आदि प्रतीत हो रहे हैं। एवं जो नेत्रों में सूर्य को और मदविन्दुओं में और वेगों में वायु को स्थापित हुए ही गानों या कुशों के प्रयोग उसप्रकार तिरस्कृत किए गए हैं जिस प्रकार वृक्षों को तोड़कर तिरस्कृत किया जाता है। सृणालतन्तुओं के समान ( सरलतापूर्वक ) जिन्होंने लोहे की सौंफलें तोड़ दी हैं। जिन्होंने बन्धन-खम्भे उसप्रकार सरलता पूर्वक नीचे गिरा दिये हैं जिसप्रकार उशीर के तृणाङ्कुर सरलता से तोड़कर नीचे गिरा दिये जाते हैं। जिन्होंने रस्सी वगैरह बंधन इसप्रकार सरलता से छिन्न-भिन्न कर दिये हैं, जिस प्रकार लताओं के समूह सरलता से तोड़ दिये जाते हैं। इसी प्रकार जिनके द्वारा बन्धन-संभ सरलतापूर्वक उपाय कर उस प्रकार चूर-चूर कर दिये गये हैं, जिस प्रकार कमल दंड (मृणाल) खरलता से खाद कर चूर-चूर कर दिये जाते हैं। इसी प्रकार जिन्होंने मृणाल समूह की भाँति भलाएँ - किवाड़ों के दंडे (बेदे) ट कर दिये हैं। जिन्होंने शरीर बाँधने वाले खंभे, उसप्रकार उखाड़ दिये हैं जिसप्रकार श्वेत कमल-समूह सरलता से उखाड़ दिया जाता है। जिनके द्वारा दूसरे हाथियों का समूह उसप्रकार तिरस्कृत किया गया है भगा दिया गया है, जिस प्रकार कृत्रिम सिंह की मुख सम्बन्धी आलेप वस्तु सरलता से तिरस्कृत की जाती है-इटा दी जाती है अथवा जिस प्रकार कृत्रिम सिंह के मुख का वस्त्रविस्तार सरलता से हटा दिया जाता है। जिन्हें बीर पुरुष परमाणु-समान नेत्र के विषय से दूर रह कर वैष्टित कर रहे हैं। अर्थात् जिस प्रकार सूक्ष्म परमाणु दृष्टिगोचर नहीं होता-नेत्रों से दूर रहता है. उसी प्रकार वीर पुरुष भी जिन्हें मयानक समझ कर दूर से उन्हें वेष्टित कर रहे हैं-दूर रह कर जिन्हें घेरे हुए हैं। जिन्होंने कर्मरूपी तालपत्रों की वायु द्वारा मेघपटल दिशाओं में उड़ा दिये हैं। आकाश की सुगन्धि को सूँघने के उद्देश्य से ही मानों टेढ़े किए हुए शुरहादंडों के शब्द विशेष से जिन्होंने ब्रह्मलोक कम्पित किये हैं। जिन्होंने धूलि के प्रक्षेप द्वारा सूर्यमण्डल को दूर फेंक दिया है। जिन्होंने कीचड़ के लेप द्वारा आकाश का प्रदेश दुर्दिनीकृत (मेष व कोहरे से आच्छादित) किया है। जिन्होंने नदी व सरोवर यादि के जल के विलोन द्वारा जल देवताओं को दूर भगा दिया है। जिनके द्वारा स्वेच्छापूर्वक किए हुए पर्यटन से वन देवियों की श्रेणी भवमी की गई है। इसी प्रकार जिन्होंने संचार करने योग्य षीधी (मधावभूमि) का विस्तार अपने विशेष वेग द्वारा उपन करने से नाप लिया है। एवं जिनका स्वभाव बौद्ध दर्शन के शाख के समान समस्त पृथिवी मंडल को शून्यता प्राप्त कराने की चेष्टा में है। अर्थात् जिस प्रकार बौद्ध दर्शन
* 'विघटितत्तटिकार्गल' इति इ. लि. सटि. ( क ग ब ) प्रतिषु पाठः । A. पथापनाय स्तम्नैः" इति टिप्पणी (क, च) प्रतिषु * 'सर' इति इ. लि. सटि (च) प्रती पाठः । १. समुच्चय व दीपकालंकार ।
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