Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२३१
यशस्तिलकचम्पूकाव्ये
मन्त्राश्रित श्रीणां शत्रवुन किं फलम् । को नाम कमारोह सम्म ४४ ॥
कभी राज्य का अहित भी कर सकता है, अतएव मन्त्री को अपने देश का निवासी होना आवश्यक है । प्राकरणिक विमर्श-युक्त प्रवचन यह है कि जब एक ही आचार्य ने प्रस्तुत 'यशस्तिलकचम्पू' में प्रधान मंत्री का स्वदेशवासी गुण गौण या उपेक्षित किया और अपने नीतिवाक्याभ्रत में स्वदेशवासी गुण का समर्थन किया तब उसके कथन में परस्पर विरोध प्रतीत होता है परन्तु ऐसा नहीं है, अर्थात् इसमें कोई विरोध नहीं है, क्योंकि नीतिवाक्यामृत में आचार्यश्री की दृष्टि प्रधान मन्त्री के गुण-निरूपण की रही है और प्रस्तुत 'यशस्तिलकचम्पू' में सन्धि व विग्रह आदि प्रयोजन-सिद्धि की मुख्यता रखते हुए कहा है कि आरम्भ किये हुए सन्धि व विग्रहादि कार्यों के निर्वाह ( पूर्ण करना ) द्वारा राजाओं की सुखप्राप्ति रूप प्रयोजन सिद्धि करनेवाला मंत्री हो सकता है, चाहे वह स्वदेश का निवासी हो अथवा विदेश का रहनेवाला हो । अतः भिन्न २ दृष्टिकोणों की अपेक्षा भिन्न-भिन्न प्रकार का निरुपण हुआ है, इसमें विरोध कुछ नहीं है -२ १। ७२०७३ ।।
हे राजन! मन्त्र- ( राजनैतिक सलाह ) युद्ध द्वारा लक्ष्मी ( राज्य-विभूति ) प्राप्त करनेवाले राजाओं को शस्त्र युद्ध करने से क्या प्रयोजन है ? अपितु कोई प्रयोजन नहीं है । उदाहरणार्थ- मन्दार वृक्ष पर ही मधु प्राप्त करनेवाला कौन बुद्धिमान पुरुष पर्वत पर चढ़ेगा ? अपितु कोई नहीं । अर्थात्जिसप्रकार मधु का इच्छुक बुद्धिमान पुरुष जब मन्दार वृक्ष पर मधु प्राप्त कर लेता है तब उसकी प्राप्ति के लिए पर्वत पर नहीं चढ़ता उसीप्रकार लक्ष्मी के इच्छुक राजा लोग जब मन्त्र-युद्ध द्वारा लक्ष्मी प्राप्त कर लेते हैं तब वे उसकी प्राप्ति हेतु शस्त्र युद्ध में क्यों प्रवृत्त होंगे ? अपितु नहीं प्रवृत्त होंगे। भाषार्थप्रस्तुत आचार्यश्री ने अपने 'नीति वाक्यामृत' में कहा है कि 'परस्पर वैर-विरोध न करनेवाले ( प्रेम और सहानुभूति रखनेवाले ) एवं हँसी मजाक- आदि स्वच्छन्द वार्तालाप न करनेवाले सावधान मंत्रियों द्वारा जो मन्त्रणा ( राजनैतिक सलाह ) की जाती है, उससे अल्प उपाय द्वारा उपयोगी महान कार्य ( राज्यांदि लक्ष्मी) की सिद्धि होती है यही मंत्र माहात्म्य है । नारद" विद्वान् ने भी कहा है कि “सावधान (बुद्धिमान् ) राजमंत्री एकान्त में बैठकर जो षाङ्गण्य ( सन्धि व विग्रहादि ) संबंधी मन्त्ररणा करते हैं, उसके फलस्वरूप वे राजा के महान कार्य (संधि विप्रादि बाgra ) को बिना क्लेश के सिद्ध कर डालते हैं" ॥१॥ इसीप्रकार हारीत विद्वान् ने कहा है कि 'राजा जिस कार्य को शुद्ध करके अनेक कष्ट उठाकर सिद्ध करता है, उसका वह कार्य मन्त्र शक्तिरूप उपाय से सरलता से सिद्ध होजाता है, अतः उसे मन्त्रियों के साथ अवश्य मन्त्रणा करानी चाहिए' ॥ १ ॥ निष्कर्ष - प्रकरण में 'उपायसर्वश' नाम के मंत्री ने यशोधर महाराज के प्रति उक्त दृष्टान्त द्वारा शस्त्र युद्ध की अपेक्षा मन्त्र-युद्ध की महत्वपूर्ण विशेषता निरूपण की ॥१७४॥
१. अर्थान्तरन्यास अलंकार । २. दृष्टान्तालंकार ।
३. तथा च सोमदेवसूरिः - अविरुद्ध रखे रैर्विहितो मंत्रो लघुनोपायेन महतः कार्यस्य सिद्धिर्मन्त्रफलम् ।
४. तथा च नारदः सावधानारच ये मंत्रं च रेकान्तमाश्रिता: । साधयन्ति नरेन्द्रस्य कृत्यं क्लेशविवर्जितम् ॥ १॥ ५. तथा च हारीतः — यत्कार्यं साधयेद् राजा क्लैशैः संग्रामपूर्वकः । मन्त्रेण सुखसाच्यं तत्तस्मान्मंत्र प्रकारयेत् ॥ १ ॥ नीतिवाक्यामृत ( भा. टी.) पू. १७१ १७२ से संकलित - सम्पादक
६. आपालंकार व दृष्टान्तालंकार