Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 384
________________ यशस्तिलकधम्पूत्रव्ये ___कदानिद्रियातस्मीकुन्तलकलापकान्तिभिः पुरसरिनीलिकाविलासहासः विविवस्त्रीने नाजनविराबिभिः अमृतकर. गालोचनकायैः सपमनुरगदूरस्थलसृष्टिभिः स्वदेवताभिषेकमरकतमयकलशमण्डलावलोकः विद्याधरपुराभिसारिकाविजम्भतिमिरवृत्तिभिः लैहिकेयसम्यसमसाइसम्यवसायः खेचरीचरणचाराचरितमेधकमणि कुष्टिमाभोगनिभिः गगनचरमिथुनरतिकेलितमालकालनकमनीयैः अमरविमानमहानीलाविधान लिम्पिभिः अम्बरसर सपेरालप्रकाशः व्योमगागएडमण्डन मइमनोहारिभिः वितिगालोपलशलशिखरशोभैः अपहसितशितिकण्ठकाठघुतिभिः संकर्षणवसनवामातानसुन्दरैः युसनदीपिकाविकासितकुवलयबनविलासिभिः भमङ्गनारण्यप्रकटतापिच्छमगहनावगहिरामैं: अवहेलितहसिह प्रसमानुषाद--अथानन्तर हे मारिदत्तमहाराज ! किसी अवसर पर जब ऐसे वर्षाऋतु के मेघों से आकाशमण्डल की शोभा उसप्रकार कृष्णवर्णवाली होरही थी जिसप्रकार प्रसूति का अवसर प्राप्त करनेवाली स्त्री के स्तन चूचुकों (अग्रभागों) की शोभा कृष्णवर्ण-युक्त होती है। उस समय वर्षाकाल की लक्ष्मी (शोभा) का उपभोग करता हुआ मैं जब तक हर्षपूर्वक स्थित हुआ था उसी अवसर पर 'सन्धिविमही' नाम के मेरे । यघिर महाराज के ) दृत में मुझे निम्नप्रकार सूचित करके दूसरे राजदूत को मेरी पज-सभा में प्रविष्ट किया। कैसे हैं वर्षाऋतु के मेघ ?--जिनकी कान्ति उसप्रकार श्याम ( कृष्ण ) है जिसप्रकार आकाशलक्ष्मी की केशसमूह कान्ति श्याम होती है। जो ऐसे मालूम पड़ते है-मानों-आकाशगङ्गा संबंधी शैवाल के उल्लास-प्रसर ( कान्ति-विस्तार ) ही हैं। जो उसप्रकार श्यामरूप से सुशोभित होरहे थे जिसप्रकार देवियों के नेत्रों का प्रअन श्यामरूप से सुशोभित होता है। जिनकी कान्ति चन्द्र-हिरण के नेत्रों सरीखी थी। जिनमें श्री सूर्य के घोड़ो के हरितारों की स्थल-दृष्टियाँ वर्तमान हैं। जो उसप्रकार शोभायमान होरहे थे जिसप्रकार स्वर्ग-देवता के अभिषेक-निमित्त स्थित हुआ हरित मणियों का कलशसमूह शोभायमान होता है। जिनकी वृत्ति ( प्रवृत्ति या कान्ति ) ऐसे अन्धकार-सरीखी थी, जो कि विद्याधर-नगरों की अभिसारिकाओं (कामुक स्त्रियों) के प्रसार-निमित्त था। जिनकी उद्यमप्रवृत्ति गहु की सेना जैसी थी | जिनकी रचना ऐसी श्यामरत्नमयी व विस्तृत बद्ध (कृत्रिम) भूमि के समान थी, जो कि विद्याधरियों के चरणकमलों के संचार-निमित्त रची गई थी। जो उसप्रकार मनोज्ञ थे जिसप्रकार ऐसे तमालवृक्षों (तमाखू या वृक्षविशेष ) के वन मनोश होते हैं, जो कि देष और विद्याधरों के स्त्री पुरुषों के जोड़ों की संभोग क्रीड़ा में निमित्त थे। जो देव-विमानों का कृष्णरत्न-पटल ( समूह ) तिरस्कृत करनेवाले हैं। जिनकी कान्ति उसपकार मनोहर है जिसप्रकार आकाशरूपी सरोवर में व्याप्त हुई कर्दम-कान्ति मनोहर होती है। जो. उसप्रकार मनोज्ञ ( मनोहर ) है जिसप्रकार आकाशरूपी हाथी के गण्डस्थलों का आभूषणरूप मद ( दानजल ) मनोज्ञ होता है। जिन्होंने नीलमणिमयी पर्वत की शिखर-शोभा तिरस्कृत की है। जिनके द्वारा रुद्र-कण्ठ की नीलकान्ति उपहास-युक्त या तिरस्कृत कीगई है। जो उसप्रकार सुन्दर है जिसप्रकार बलभद्र के वस्त्र का बुनमा व विस्तार सुन्दर होता है। जो उसप्रकार उल्लासजनक या सुशोभित होरहे हैं जिसप्रकार स्वर्ग की चापड़ी में प्रफुल्लित हुआ नीलकमलों का वन उल्लासजनक या सुशोभित होता है। जो चारों ओर विस्तृत होने के फलस्यरूप उसप्रकार मनोज्ञ है जिसप्रकार आकाशरूपी धन में उत्पन्न हुए कालिक वृक्षों के पुष्प-गुच्छों के यन चारों ओर विस्तृत होने के फलस्वरूप मनोज्ञ होते हैं। जिन्होंने *'कुट्टिमाभङ्गभोगिभिः' का। लिपिभिः' क. 1 मिदनमनोहारैः' का । S 'उपसित' क. ख. ग. । १. उकंच-'कान्तापिनी या याति संकेत साभिसारिकार यश. सं.दी.से संकलित-सम्पादक

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