Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यशस्तिनकचम्पूकाव्ये सामसाध्येषु कार्येषु को हि शस्नं प्रयोजयेत् । मृतिहेतु डो यत्र कस्सन विषदायकः ॥ १३ ॥
अकुपश्चात्मकश्मीणो संविभाग मरेश्वरः। मधुकछत्रमिवाप्नोति सर्वनाशं सहारमना ॥ ९४ ॥ धन का अपहरण करना दंडनीति है। जैमिनि' नीतिवेत्ता ने भी दंडनीति की उक्तप्रकार व्याख्या की है। प्राकरणिक अभिप्राय यह है कि उक्त मंत्री यशोधर महाराज से कहता है कि राजन् ! साम, दान व भेदनीति द्वारा सिद्ध न होनेवाले कार्य में दंडनीति की अपेक्षा होती है न कि सर्वत्र HEIR हे राजन! निश्चय से उक्त पाँचप्रकार की सामनीति द्वारा सिद्ध होनेवाले कार्यों (शत्रुओं पर विजयश्री प्राप्त करना
आदि) में कौन पुरुष शस्त्र प्रेरित करेगा ? अपि तु कोई नहीं। उदाहरणार्थ-गुड़-भक्षण जिस पुरुष के घात का हेतु है उस पुरुष के घात के लिए विप देनेवाला कौन होगा ? अपितु कोई नहीं । भाषार्थ-आचार्य श्री ने कहा है कि "विजय के इच्छुक राजा को सामनीति द्वारा सिद्ध होनेवाला इष्ट प्रयोजन (शत्रु-विजय-आदि) युद्ध द्वारा सिद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब गुड़-भक्षण द्वारा ही अभिलषित प्रयोजन (आरोग्य लाभ ) सिद्ध होता है तब कौन बुद्धिमान् पुरुष विष-भक्षण में प्रवृत्त होगा? अपि कोई नहीं"। बल्लभदेव विद्वान् ने भी कहा कि 'जिसप्रकार जब शकर-भक्षण से पित्त शान्त होता है तब पटोल ( औषधिविशेष ) के भक्षण से कोई लाभ नहीं उसीप्रकार सामनौति द्वारा सिद्ध होनवाले शत्रुविजय आदि कार्यों में दंडनीति का प्रयोग विद्वानों को नहीं करना चाहिए ॥२॥
भौतिवेत्ता हारीत ने कहा है कि 'जब गुङ्ग-भक्षण से शारीरिक आरोग्यता शक्ति होती है तब उसके लिए विष-भक्षण में कौन प्रवृत्त होगा? अपि तु कोई नहीं ॥१॥ प्रकरण में उक्त मंत्री उक्त उदाहरण द्वारा सामनीति से सिद्ध होनेवाले कार्यों में दण्डनीति का प्रयोग निरर्थक सिद्ध कर रहा है" ॥६॥
जो राजा कुटुम्बियों-आदि के लिए अपनी संपत्ति का वितरण (दान) नहीं करता, यह अपने जीवन के साथ उसप्रकार समस्त लक्ष्मी का जय प्राप्त करता है जिसप्रकार शहद का छत्ता शहद की मक्खियों के क्षय के साथ नष्ट होता है। अर्थात-जिसप्रकार शहद की मक्खियाँ चिरकाल तक पुष्पों से राइड एकदा करती हैं और भौरों को नहीं खाने देती, इसलिए उनका शहद भीम लोग छत्ता वोड़कर लेजाते हैं उसीप्रकार कुटुम्बियों-त्रादि' को अपनी सम्पत्तियों का दान न करनेवाले राजा का धन भी उसके साथ मष्ट होजाता है..चोरों-आदि द्वारा अपहरण कर लिया जाता है।
१. तथा च सोमदेवमूरि:-वधः परिक्लेशोऽर्थहरणं च दण्डः ॥१॥ २. सथा च जैमिनिः--बंधस्तु क्रियते यत्र परिक्लेशोऽथवा रिपोः । अर्थस्य प्रह भूरिदण्डः स परिकीर्तितः ॥१॥
नौतिवाक्यामृत व्यवहारसमुश ( भा, टी.) पृ. ३९.३८० से संकलित-सम्पादक ३. जाति-अलङ्कार । ४. तथा च सोमदेवपूरिः सामसाध्य युगसाध्यं न कुर्यात् । गुडादभिप्रेतसिद्धौ को नाम विर्ष भुजीत ॥ तथा च पालभदेवः--साम्नेव यत्र सिद्धिस्तत्र न दण्डो जुधैर्विनियोज्यः।
पिसं यदि पार्करया शाम्यति ततः किं तत्पटोलेन ॥ १ ॥ ६. तथा च हारीतः-गुडास्वादनतः शतिर्यदि गात्रस्य जायते । आरोग्यलक्षण नाम तद्भशयति को विषं ॥१॥
नीतिवाक्यामृत (भाषाटीका-समेत) पृ. ३९० (युद्धसमद्देश ) से समुत-सम्पादक ! ७. दृष्टान्तालंकार आक्षेपार्लकार।