Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सुतीय भाषासः
२०३ देब, सहापापं हि राज्य रामपति मुहमहुहुमुन् प्रमुत्तीरपि पिसी, सरोसा परिकामति । तप कल्प कार्यसिबिरस्ति इति विक्षाला किं।
मसहायः समर्थोऽपि बातु हितसिखये । बाहितिबिहीनो हि पुलस्वापि न एक २२९॥
ततोऽसौ यदि देवस्य परमार्थतो न कुपति, सत्पुरुषपरिषदिव मनसि मनागपि वान्मस्पति, तस्विमिति मनीषापौरुषाभ्यामशेषशिौण्डीरशिवामणीयमानमतिसमीक्ष पुण्डरीकाक्षम्, सिन्धुरप्रधानो हि विन पिसामीशानामिति
हे राजन् ! निश्चय से जिस राज्य में सहायता करता मानी अादि अधिकारियों की अधिकता होती है, वह बार बार अनेक द्वारों से आई हुई विपत्तियाँ नष्ट करया है, क्योंकि निश्चय से जिसप्रकार स्थ-आदि का एक पहिया दूसरे पहिए के सहायता के बिना नहीं घूम सकता उसीप्रकार अकेला राजा भी मन्त्री-आदि सहायकों के विना राजकीय कार्य सन्धि व विग्रह-आदि ) में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता 'विशालाक्ष' नामके कविने कहा है कि 'अकेला पुरुष कार्य-सिद्धि नहीं कर सकता' |
हे राजन् । उक्त विषय पर कुछ निमप्रकार कहता हूँ-निश्चय से जिसप्रकार अग्नि वायु के बिना पराल को भी जलाने में समर्थ नहीं होती जसीमकार समर्थ पुरुष भी सहायकों के बिना कदापि कार्य-सिद्धि नहीं कर सकता। भावार्थ-नीतिकार प्रस्तुत आचार्यश्री' ने भी उक्त विषय पर कहा है कि 'जिसप्रकार स्थ-यादि का एक पहिया दूसरे पहिए की सहायता के बिना नहीं घूम सकता इसीप्रकार अकेल राजा मी मन्त्री भादि सहायकों के बिना राजकीय कार्यों ( सन्धि व यिग्रहादि) में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। उदाहरणार्थ-जिसप्रकार अनि इन्धन-युक्त होने पर भी हवा के विना प्रचलित नहीं हो सकती उसीप्रकार अजिव म सुयोग्य राजाभी मन्त्री-आदि अधिकारियों की सहायता के विना राज्यशासन करने में समर्थ नहीं हो सकता। यखभदेव" नीतिकार ने भी उक्त बात कही है। प्रकरण में "शनक' नामके गुप्तचर ने यशोधरमहाराज से सुयोग्य मंत्री-आदि अधिकारियों की राज्य संचालन में विशेष अपेक्षा निरूपण करते हुए अकेले पामरोदार नाम के मंत्री द्वारा, जो कि अयोग्य व दुष्ट है, राज्य संचालन नहीं हो सकता, यह कहा है ॥२२९।।
इसलिए हे राजन् ! यदि यह आपका 'पामरोदार' नामका मन्त्री निश्चय से आपके अपर कुपित नहीं है और यदि आपसे चिप्स में उसप्रकार जरा सी भी ईर्ष्या नहीं करता जिसप्रकार सजन पुरुषों का समूह आपसे जरा सी भी ईर्ष्या नहीं करता तो वह, गृह में प्रविष्ट हुए जंगली कबूतर के समान अर्थान-- जिसप्रकार जिस गृहमें जंगली कबूतर घुस जाता है वह, उर्स ( मनुष्यों से शून्य-उनाद) होजाता है, क्यों ? निम्नप्रकार के राज्याधिकारियों को सहन न करता हुआ ( उनसे ईष्या करता हुआ ) ऐसे 'पुण्डरीकाक्ष' मन्त्री को निकाल कर अद्वितीय प्रभुत्व में स्थित हो रहा है ? जिसकी बुद्धि और शुरवीरता बुद्धि (राजनैतिक ज्ञान ) और शूरता द्वारा समस्त विद्वानों य शौण्डीरों ( त्याग व पराक्रम से प्रसिद्ध) के मध्य शिरोरल के समान माचरण करती है। अर्थान्-सर्वश्रेष्ठ है.हे राजन् ! 'विजिगीषु राजा जो
शत्रों पर विजयश्री प्राप्त करते हैं, उसमें हाथी ही प्रधान हैं। अर्धात्-हाथियों द्वारा ही शत्रु जीते __ जाते हैं यदि यह निश्चित सिद्धान्त है, तो वह ऐसे 'वन्धुजीव' नामके गज (हाथी ) शासवेत्ता को
१. तथा च सोमदेवसूरि:-कल्प कार्यसिद्धिरित ||१६| न ह्या परिश्रमति ॥२॥ किममातः सेन्धनोऽपि वहिर्वलति ॥१॥ २. तथा च बलभदेवः-किं करोति समयोऽपि राजा मन्त्रित्रार्जेटः। प्रदोऽपि यथा पहिः समरगविना कृतः ॥१॥
नीतिदायाभूत ( भा. टी. प. १६५ से संक लेड-सम्पादक ३. स्टान्दालंका