Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुतीय आवासः
३०१ । एकामास्ये महीपाले माहे लक्ष्मीविज़म्भते । लतायास्तत्र का वृतिः शासका पत्र शामिति ॥ ॥
देव, लामीलतावलयितगलगल इव भवति प्रावण साऽपि जनः। यतो य एवात्मनो मर्ज गडे पाहिल्या लम्मितुमिच्छति तस्यैव मुम्बमबलोकते। किंच!
कि नास्ति पलं सहि येन तिमिः साइरो गालाहारे । प्रायेण हि पेहभृतां तत्रासक्तियतो मृत्युः ॥२३२॥
देव, देवोऽस्य निक्षितता मास्तिकता व तापि न संतति । यतो बानमध्ये दुरारमा मुषा भृत्यभाषेन पाकोपकाविपरिचारकतया चिरकाल अपचपच क्शयताशातिप्रकारालति दुरपवादे पुनर्तुःप्रसिरिमयात नियमोडकोष एवं निति निविरप्रमोड स्वयमेवावधीत् । विशिष प्रायश्चतमचिरतापामिदमयोपत्
रविरश्मिरमपावकमारपीबाययोऽस्पः स्पृष्टाः । न हि दुष्टास्तदई प्रकृतिशुधि लमध्येऽपि ॥ २३ ॥
हे राजन् ! जिस प्रकार एक शास्त्रापाले पृक्ष पर पढ़ी हुई लला विशेषरूप से वृद्धिंगत नहीं हो सकती उसीप्रकार केवल एक मन्त्री घाले राजा की लक्ष्मी भी विशेषरूप से वृद्धिंगत नहीं हो सकती' ||२३१।।
हे राजन् ! प्रायः करके सभी पुरुष उसप्रकार लक्ष्मी (धनादि-सम्पत्ति ) द्वारा बँधे हुए कण्ठवाले होते है जिसप्रकार बकरा प्रायः लता द्वारा बंधे हुए कण्ठषाला होता है। अर्थान-प्रायः संसार में सभी लोग उसप्रकार धनादि सम्पत्ति के इच्छुक होते हैं जिसमकार बकरा बेलपली खाने का इच्छुक होता है। इसलिए बकरे-सरीखे प्रायः सभी धनार्थी लोग उस मनुष्य का मुख देखते है, जो कि इसके कण्ठ पर पैर स्थापित करके उसे लम्बा करने की इच्छा करता है। अर्थात्-मारना चाहना है। भावार्थ-जिस प्रकार बकरा तण व लता-आदि देखकर सूनाकार (खटीक या कसाई) के मुख की ओर देखता है उसीप्रकार लक्ष्मी का इच्छुक पुरुष भी उसका आदर करता है, जिससे इसका मरण होता है ! विशेषता यह है
राजन् ! क्या पानी में माँस नहीं है? अर्थात्-क्या पानी में बड़ी मछली के खाने के लिए छोटी मछलियों नहीं है? जिससे कि मछली बक (टे) फौदे पर लगे हुए माँस के मरण में तत्पर होती है। नीति यह है कि निश्चय से संसार के प्राणियों की उस पदार्थ में आसक्ति होती है, जिस पदार्थ से उनका गरण होता है। भावार्थ प्रकरण में हे राजन् ! वह पामरोदार नाम का मन्त्री लोभ-परा अपना मरण करनेवाले अन्याय के धन का संचय करने में उसप्रकार तत्पर होरहा है जिस प्रकार मारी जानेवाली मछली काँटे पर स्थित हुए माँस के भक्षण करने में तत्पर होती है ॥२३॥
स्वामिन ! आप इस मन्त्री को निर्दयता व नास्तिकता जानते हुए भी नहीं जानते। क्योकि इस पापी मन्त्री ने पाँचों पाण्डालों से निरर्थक (बिना तनख्वाह दिये ) नौकरी कराई व उनसे रसोईया
और डीमर की सेवा (वेगार) कराकर उन्हें चिरकाल तक श्रृंगार करते हुए क्लेशित किया, जिसके फलस्वरूप इन पाँचों चाण्डालों के जातिवालों के पूत्कार (क्षुब्ध) होजाने से जप प्रस्तुत मन्त्री की निन्दा पारों भोर से होने लगी तब बाद में इसने अपनी निन्दा होने के डर से रात्रि में गाद निद्रा में सोए हुए उन पाँघों चाण्डालों को अपने गृह के अग्रभाग में ही वयं मार डाला। तदनन्तर जब धार्मिक पुरुषों ने इसको प्रायश्चित्त ( पापशुद्धि) करने के लिए प्रेरित किया, अर्थान-तू इस महान पातक का प्रायश्चित्त मारण कर' इसप्रकार आग्रह किया तष इसने उनसे निम्नप्रकार कहा
जिसप्रकार सूर्य-किरणें, रत्न, अपि, गाय और वायु ये पदार्थ चाण्डालों द्वारा छुए जाने पर भी दूषित नहीं होते उसीप्रकार स्वभाव से विशुद्ध में ( पामरोदार नाम का मंत्री ) भी चाण्डालों के मध्य में
1. एटान्तालंकार । २. शान्तालंकार।