Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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तृतीय आवास:
से दोर्घायु होती है; क्योंकि इससे पेट की गुड़गुड़ाहट, अफारा, और भारीपन आदि सय विकार दूर होजाते हैं, इसलिए flament a, कोण, भन शोकयादि मानसिक विकार रोके जाते हैं उसप्रकार शारीरिक मल व मूलादि का वेग कदापि नहीं रोकना चाहिए। अन्यथा अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होजाती हैं । नीतिकार प्रस्तुत आचार्य' श्री लिखते हैं कि 'स्वास्थ्य चाहनेवाले मानव को किसी कार्य में आसक्त होकर शारीरिक क्रियाएँ ( मल-मूत्रादि का यथासमय क्षेपण आदि ) न रोकनी चाहिए एवं उसे मल-मूत्रादि का वेग, कसरत, नींद, स्नान, भोजन व ताजी हवा में घूमना आदि की यथासमय प्रवृत्ति नहीं रोकनी चाहिए। अर्थात् उक्त कार्य यथासमय करना चाहिए, इसके विपरीत मलमूत्रादि के वेगों को रोकने से उत्पन्न होनेवाली हानि का निरूपण करते हुए उक्त आचार्य श्री ने लिखा है कि 'जो व्यक्ति अपने वीर्य, मल-मूत्र और वायु के वेग रोकता है, उसे पथरी, भगन्दर, गुल्म व बबासीर आदि रोग उत्पन्न होजाते हैं' । इसीप्रकार शारीरिक स्वास्थ्य के इच्छुक पुरुष को शारीरिक क्रियाओं-शीच आदि से निवृत्ति होते हुए दन्तधावन करने के पश्चात् यथाविधि व्यायाम करना चाहिए। क्योंकि व्यायाम के विना उदर की अभि का वोपन व शारीरिक दृढ़ता नहीं प्राप्त होसकती । नीतिकार प्रस्तुत आचार्य श्री ने लिखा है कि 'शारीरिक परिश्रम उत्पन्न करनेवाली किया (दंड, बैठक व ड्रिल एवं शस्त्र संचालन आदि कार्य ) को 'व्यायाम' कहते हैं।' 'चरक विद्वान् ने भी लिखा है कि 'शरीर को स्थिर रखनेवाली, शक्तिवर्द्धिनी व मनको प्रिय लगने वाली शत्र-संचालन आदि शारीरिक क्रिया को 'व्यायाम' कहते हैं । व्यायाम का समय निर्देश करते हुए आचार्य श्री ने लिखा है कि 'जिनकी शारारिक शक्ति क्षीण हो चुकी है जिनके शरीर में खून की कमी है-- ऐसे दुर्बल मनुष्य, अजीर्णरोगी, वृद्धपुरुष, लकवा आदि वातरोग से पीड़ित और रूक्ष भोजी मनुष्यों को छोड़कर दूसरे स्वस्थ बालकों व नवयुवकों के लिए प्रातःकाल व्यायाम करना रसायन के समान 'लाभदायक है'। 'चरक' विद्वान ने भी उक्त बात का समर्थन किया है । खड्ग श्रादि शस्त्र संचालन तथा हाथी व घोड़े की सवारी द्वारा व्यायाम को सफल बनाना चाहिए"। आयुर्वेद के विद्वान आचार्यों ने शरीर में पसीना आने तक व्यायाम का समय माना है । जो शारीरिक शक्ति का उल्लङ्घन करके अधिक मात्रा में व्यायाम करता है, उसे कौन-कौन सी शारीरिक व्याधियाँ नहीं होती ? अपितु सभी
१. तथा च सोमदेवसूरिः—त कार्यभ्यासशेन शारीरं कर्मोपन्यात् ॥ १ ॥
वेग-व्यायाम - खाप-स्नान-भोजन- स्वच्छन्दप्रतिं कालाकोवन्ध्यात् ॥ २ ॥!
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१. तथा च सोमदेवसूरि :- शुक्र मलमूत्र मग रोघोऽश्मरीभगन्दर - गुल्मार्शसां हेतुः ॥ १ ॥ नीतिवाक्यामृत ०३२३-३२४ से संकलित–सम्पादक
३. तथा च सोमदेवसूरि :- शरीरायासजननी किया व्यायामः ॥ १ ॥ ४. तथा च चरकः शरीरचेष्टा या चेष्टा स्थैर्याच बलवर्द्धिनी । देहव्यायाम संख्याता मात्र या तो समाचरेत् ॥ १ ॥ ५. तथा च सोमदेवसूरि :- गोसगँ व्यायामो रसायनमन्यत्र क्षीपाजीवात फिरूका भोजिभ्यः ॥ १ ॥
६. तथा च चरकः———मालवृद्मप्रवशताश्च ये चोच्चैर्वहुभाषकाः । ते वर्जयेयुययामं क्षुधिता स्तृषिताथ ये ॥ १ ॥
७.
तथा च सोमदेवसूरिः शब्दवाहनाभ्यासेन व्यायामं सफलयेत् ॥ १ ॥
८. तथा च सोमदेवसूरिः आदेहस्वेदं व्यायाम कालमुशन्स्याचार्याः ॥ २ ॥