Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 378
________________ यशस्विलकचम्पूचव्ये हकदलीकाण्डकाननरमणीयम् मलकाकरकपादपालनखपुपनिष्पादितविहारधाशोभम् अप्रविमनिजदेहच्छायापनीताखिलातपसंसापम गाय परतश्रमजावेद मियभार प्रियसमाजनमित्र, चरणकिसलयप्रहारझोडाभिः ऊरुरम्भा. स्तम्भपरिसम्मकेलिभिः मेखलादेशलाशय्यारोहणविनोद तनूरहराजितापिच्छमारीभिः नाभिमण्डलालघालपरिसर्पयोः पलि. बालीवलयर सिभिः कुचकुसुमस्तबच्छविकल्पः भुजलतालिङ्गनविधिभिः बाहुतस्मूलदर्शनकुतूहलैः बिम्बाधरफलास्यादनप्रीतिभिः अपाङ्गप्रसवखेलितः सभापछवप्रसाधनलीलाभिः अबकवासरीपरिमाउनमनोरथैः कपोलपुलकप्रसाधनप्रसूनावनितिभिः यौवनारण्यवनदेवताराधनवरप्रसारिवान्यश्च तस्तै विलासैः महनमविनोदमुद्यानमलिचिश्मनुभूध, पुनर्यम्समन्तादारमतरसरस्सारणीसाहल सेकमकुमारीशीरसारकटगांविर्भवादलश्यामलितदिग्वलय : नवाप्रनागपल्लोपष्टवोल्लासभराभुनपूगनगाभोगभसिसभानुप्रभाहोता है। जिसने लाक्षारस से रंगे हुए पादपल्लवों से व्यास नखरूप पुष्पों द्वारा क्रीड़ाभूमि की शोभा उसप्रकार उत्पन्न की है जिसप्रकार वगीचा प्रवाल च पुष्पों द्वारा क्रीडाभूमि की शोभा उत्पन्न करता है। जिसने अपनी अनोखी शारीरिक कान्ति द्वारा समस्त गर्मी का संताप उसप्रकार दूर किया है जिसप्रकार छगीचा वृक्ष-छाया द्वारा गमी-संताप दूर करता है एवं जिसने महान् विस्तार वाले पुरुषरत (विपरीत मेथनकीड़ा) के खेद से उत्पन्न हुए स्वेदजल मञ्जरी-जान द्वारा फवारों की शोभा उसप्रकार उत्पन्न की है जिसप्रकार बगीचा फुव्वारों की गृह-शोभा उत्पन्न करता है। अथानन्तर हे मारिदत्त महाराज ! मैंने किन २ क्रीड़ाओं द्वारा प्रस्तुत उद्यान का अनुभष किया ? उन्हें श्रवण कीजिए चरणरूपी किसलयों ( कोमल पत्तों) की प्रहार क्रीड़ाएँ, दोनों जवारूप केला-स्तम्भों की आलिङ्गन-क्रीड़ाएँ, स्मरमन्दिर प्रदेश ( स्त्री की जननेन्द्रिय का स्थान ) रूप पल्लवशय्या पर की हुई प्रारोहण-क्रीड़ाएँ, रोमपक्तिरूपी तमालवृक्ष-मारियों के विलास. नाभिमण्डलरूपी क्यारी पर श्रारोहण द्वारा शोभायमान होने की क्रीड़ाएँ, त्रिवलि ( उदररेखा ) रूपी लताओं की मण्डलक्रीड़ाएँ, मुच ( स्तन ) रूप फूलों के गुच्छों की विविध भाँति की क्रीड़ाएँ (मर्दन-आदि विलास), भुजारूपी लताओं की आलिङ्गनविधान-क्रीड़ाएँ, मुजारूप वृक्षों के मूलों ( कुचकलशों ) के दर्शन-कौतूहल, बिम्धफल-सरीखे श्रोष्टरूप फलों की आस्वादन-प्रीतियाँ, कटाक्ष-क्षेपणरूप पुष्प-क्रीड़ाएँ, मौहों का चढ़ानारूपी पल्लवों की प्रसाधन-( शृङ्गार ) क्रीड़ाएँ, केशरूपी वल्लरियों ( लताओं ) के परिमर्दनमनोरथ, गालों पर किये हुए पच्चनख-प्रदानरूप पुष्पों की चुण्टन क्रीड़ाएं एवं दूसरे कामी पुरुषों के प्रसिद्ध विलास (क्रीड़ाएँ ), जो कि जबानीरूपी धन की वनदेवता की आराधना के वरदानों सरीखे थे। उपसंहारहे मारिदत्त महाराज ! मैंने ( यशोधर महाराज ने ) सीजन सरीखे उक्त 'मदनमद विनोद' नामके बगीचे का उक्तप्रकार की क्रीड़ाओंपूर्वक अनुभव किया । प्रसङ्ग-अथानन्तर हे मारिदत्त महाराज ! कसे फुब्बारों के गृह में प्यारी रियों के साथ क्रीडा करते हुए मैंने प्रोष्मऋतु संबंधी मध्याहवेलाग व्यतीत की ? जिसमें ( फुब्बारों के गृह में ) अत्यन्त वेग से वहनेवाली सारणी ( छोटी नदी या नहर ) के जल-सिश्चन द्वारा अत्यन्त कोमल हुई खस की मनोहर भिप्ति के मध्यभाग से प्रकट हुए दूब-पल्लवों से समस्त दिग्मण्डल श्यामलिन हुआ है। जहाँपर नवीन उत्पन्न हुई पनवेलों ' 'नवांग०, ( नवीन ) ख० ग.।

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