Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 357
________________ तृतीय श्रवासः द्वारि तदेव बद्रा संकीर्णाश्चेतसा त्र पुषा च शत्रव इव राजन्ते बहुभेदाः कुञ्जराश्येते ॥ २९१ ॥ इति महामाश्रसमूहाम्नायमानव भद्रमन्दमृग की विस्तीर्थी येत कमानः श्रवहमासे तावदेव मोतिकः संजातसिलकायाम्, पट्टवर्धन आकोलाय, अधोनिबन्धिन्यामुनाङ्कुशः परचक्रमर्दनी = गन्धचारिण्याम् अहित कालानल कोषिन्यात् चित्र सभिन्नमदमर्यादायां च विजयशेखर इनकस्थेन विनिवेदितद्विरदमदावस्थः सोत्तालं वृचास्त रभुवनकटवर्धन किशोधनप्रति भेदन प्रवर्धनवर्णकर गन्धकरोद्दोपनहसिनविनिर्तनम मेमदोपचारो पदेशविशारद रायडु शगुणाङ्कुशवाचार्य परिषदा समं प्रधावणिषु करिविनोदविलोकनदीददं प्रासादमध्यास्य ममदलेखोला सिण्डलश्री मुहर निन्द्रत जृम्भारम्भशुम्भािसः । करिपतिरयमन्यामेव देवाद्य कांचिमिति रणान्ते स्वं यथा जैत्रचापः ॥ २९२ ॥ ३३३ से विभूषित और कर-तनु ( टेक्स देने में असमर्थ ) एवं स्थूल - ईक्षण ( स्थूल बुद्धि के धारक हैं उन ओं द्वारा बहुलता से उसप्रकार आचरण किया जाता है जिसप्रकार मृगजाति के हाथी आचरण करते हैं । अर्थात् — जिसप्रकार मृगजाति के हाथी बहु-अलीकमनवाले (द्दीन-हृदयवाले), सेवा में दुर्मेधस ( यथोक्त शिक्षा ग्रहण न करनेवाले ), हस्व-उरोमारे ( अल्प हृदयवाले) और कर में तनु ( छोटी - पृथियी पर न लगनेवाली कमजोर -- सूँडवाले) एवं स्थूलेक्षण (स्थूलवस्तु देखनेषाले ) होते हैं। उन मृगजाति के हाथी समान शत्रुओं द्वारा उसप्रकार आचरण किया जाता है जिसप्रकार भृगायित - हिरण-आचरण करते हैं । अर्थात् हिरणसमान युद्धभूमि से भाग जाते हैं। कैसे हैं वे मृगजाति के हाथी और शत्रु ? जो अल्पच्छविप्रभृति ( हीन शारीरिक कान्दि-आदि से युक्त और शत्रुपक्ष में अल्पप्रतापी ) हैं । जो शोकालु (विन्ध्याचल आदि वनों का स्मरण करनेवाले और शत्रुपक्ष में पश्चात्तापकारक हैं। जो दुर्भर ( भारवहन करने में असमर्थ और पक्षान्तर में हीन अतिशय युक्त ) है । जो संक्षिप्त ( समस्त शारीरिक अल्प श्रङ्गों से युक्त और शत्रुपक्ष में अल्पधन या अल्पसेना से युक्त ) हैं एवं जो अणुवंशक ( अस्पष्ठ प्रदेशवाले और पक्षान्तर में जाति व कुल से हीन ) हैं ||२०| हे राजन् ! आपके सिंहद्वार पर बहुभदवाले ( मिश्रजाति के ) ये हाथी, जो कि मन और शरीर से संकीर्ण (बुद्ध-हनता से मिश्रित ) हैं, बँधे हुए उसप्रकार शोभायमान होरहे हैं जिसप्रकार आपके ऐसे शत्रु शोभायमान होते हैं, जो कि वित्त व शरीर से संकीर्ण ( अल्प विस्तारवाले) और बहुभेवाले (नाना प्रकार के) एवं सिंहद्वार पर बँधे हुए शोभायमान होते हैं ||२१|| अथानन्तर उक्त महल पर स्थित हुए और निम्नप्रकार हाथियों का निरूपण करनेवाले गजोपजीवी (महावत) लोगों द्वारा आनन्दित चित्त किये गए मैंने मदोन्मत्त हाथियों की कीड़ाएँ देखीं । हे राजन् ! मद ( दानजल ) रूपी कस्तूरी की रेखाओं से सुशोभित हुए कपोलस्थल की शोभावाला और बारंबार अनिता पूर्वक जंभाई लेने से शोभायमान होनेवाले विलास (नेत्र संचालन ) वाला प का यह गजेन्द्र इस समय कोई ऐसी अपूर्व शोभा को उसप्रकार धारण कर रहा है जिसप्रकार जयनशील धनुष के धारक आप मद (दानजल) जैसी कस्तूरी रेखाओं से सुशोभित होनेवाले गाल-स्थल की शोभा से युक्त और बारंबार अनिश्चलतापूर्वक जैभाई लेने से सुशोभित होनेवाले विलास (नेत्र संचालन आदि / वाले हुए युद्ध के 'करशोधनप्रभेदप्रवर्धनवर्णकरमकरोद्दीपनोद्भासन वि = 'गन्धधारिण्याम्' क० I ' वरीवसन्तः' क० । १. श्लेष व उपमालंकार । २. श्लेषोषमा व समुच्चगालंकार | निवर्स' । .

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