Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये कत्रिकौमुदीवन्द्रस्य
महिवलयितमूलः पादपः केन सेव्यः भवति क सह शिष्टः शल्यसा तडागम् । विषकलुषितमन्धः कस्य भोज्याप जातं कुसचिवहतभूतिभूपतिः कैरुपास्यः ॥ १३२ ॥
अविवेकमसिन पतिर्मन्त्री गुणवत्सु वक्रितप्रीवः । यन खलाश्च प्रबलास्तत्र कधं सजनावसरः ॥ १३३ ॥ विक्षधमुग्धस्य
परजमने लमीविपिने विजयो हुताशने तेजः । सपने च पर मण्डलमवनिपतेर्भवति दुःसचिवात् ॥ १३५ ॥
अथानन्तर 'शङ्कनक' नाम का गुप्तचर यशोधर महाराज से कहता है कि हे राजन् ! उक्त विषय पर कविकौमुदीचन्द्र नाम के कवि की पद्यरचना निम्नप्रकार श्रवण कीजिए :...
__ जिसप्रकार सर्प से वेष्टित स्कन्ध ( तना ) वाला वृक्ष किसके द्वारा सेवन करने योग्य होता है ? अपि तु किसी के द्वारा नहीं एवं हरियों के सगमवाले तालाब को चाण्डाल के सिवाय कौन उत्तम कुलवाला पुरुष सेवन करता है ? अपि तु कोई नहीं करता और विष-दूषित भोजन किस पुरुष के स्थाने योग्य होता है? अपि तु किसी के नहीं, उसीप्रकार ऐसा राजा, जिसका ऐश्वर्य { राज्यविभूति ) दुष्ट मन्त्री द्वारा दूषित हो चुका है, किन पुरुषों द्वारा उपासना करने योग्य है ? किसी के द्वारा नहीं।
भावार्थ-जिसप्रकार ऐसा वृक्ष, जिसके तने पर सर्प लिपटे हुए हैं, किसी के द्वारा सेवन नहीं किया जाता एवं ऐसे तालाब का, जिसके किनारे पर हड्डी गाढ़कर ऊँची की गई है, आश्रय कोई उत्तम कुलवाला नहीं करता। अर्थान-चाण्डालों के तालाब के तट पर एक ही गादकर ऊँची उठाई जाती है, उस संकेत (चिन्ह) से वह तालाव चाण्डालों का समझा जाता है, अतः कोई कुलीन पुरुष उसका पानी नहीं पीवा एवं जिसप्रकार विष से कलुषित हुआ भोजन किसी के द्वारा भक्षण नहीं किया जाता उसीप्रकार दुष्ट मन्त्री द्वारा नष्ट किया गया है ऐश्वर्य जिसका ऐसा राजा भी किसी के द्वारा सेवन नही किया जाता ॥१३॥ जिस राज्य में राजा विचार-रहित बुद्धिवाला है। अर्थान् -ऐसा राजा, जिसकी बुद्धि से हेय (छोड़नेलायक) व उपादेय ( ग्रहण करने लायक ) का विवेक ( विचार ) नष्ट हो चुका है और जिस राज्य में मंत्री विद्वानों से विमुख रहता है एवं जिसमें चुगलखोर विशेष यलिष्ट है, उस राज्य में सज्जन पुरुषों का अवसर किसप्रकार हो सकता है ? अपि तु नहीं हो सकता' ।। १३३ ।।
हे राजन् ! प्रस्तुत दुष्ट मन्त्री के विषय पर विदग्धमुग्ध' नाम के कवि की निम्नप्रकार पद्य रचना सुनिए
दुष्ट मन्त्री से राजा की निम्नप्रकार हानि होती है । लक्ष्मी (शोभा) कमल-पन में होती है किन्तु राजा के समीप लक्ष्मी ( साम्राज्य लक्ष्मी) नहीं रहती-नष्ट हो जाती है और विजय वन में होता है। अर्थात्-वि-जय-(पक्षियों का जय) वन में होता है किन्तु राजा में विजय (विशिष्टजय-शत्रुओं पर विजयश्री प्राप्त करना ) नहीं होता एवं तेज (प्रताप-तपना ) अग्नि में ही पाया जाता है किन्तु राजा में तेज सैनिक शक्ति व खजाने की शक्तिरूप प्रताप) नहीं रहता-नष्ट होजाता है। इसीप्रकार सूर्य में ही उत्कृष्ट मण्डल (बिम्ब ) होता है परन्तु राजा के समीप मण्डल ( देश) नहीं होता। अर्थात्-उसके हाथ से देश निकल जाता है। ।। १३४ ॥
प्रस्तुत धात्रकार महाकवि ( श्रीमत्सोमदेवरि) का कल्पिस नाम । १. माळेपालद्वार। १. माधेपालबार । ३. समुच्चय र दीपकालकार।