Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सृतीय आधासः न्या भषि धियो यान्सि पुसा भोक्तुमजानताम् । अबदाः कुञ्जरेन्द्राणां पुलाका हव हस्तगाः ॥ ९॥ निजवंशैकदीपस्य वैरं सापस्मर्ज न ते। चतुरन्तमहीनाधे त्वयि तमिज कुतः ॥ ६ ॥
सोमदेवसूरि' लिखते हैं कि महाकवि श्रीभवभूति-विरचित 'मालतीमाधव' नामक नाटक में लिखा है कि माधब के पिता 'देवराव' ने बहुत दूर रहकर के भी 'कामन्दकी' नाम की सन्यासिनी के प्रयोग द्वारा ( उसे मालती के पास भेजकर ) अपने पुत्र 'माधव' के लिए 'मालती' प्राप्त की थी, यह देवरात की बुद्धिशक्ति का ही अनोखा माहात्म्य था । विद्वानों की बुद्धि हो शत्रु पर विजयश्री प्राप्त करने में सफल शस्त्र मानी जाती है। क्योंकि जिसप्रकार पत्र के प्रहार से ताड़ित किए हुए पर्वत पुनः उत्पन्न नहीं होते उसीप्रकार विद्वानों की बुद्धि द्वारा जीते गए शत्र भी पुनः शत्रुता करने का साहस नहीं करते। गुरु विद्वान् ने भी बुद्धिशव को शत्रु से विजयश्री प्राप्त कराने में सफल बताया है। प्रकरण में प्रस्तुत मंत्री यशोधर महाराज से बुद्धिबल का माहात्म्य निर्देश करता है ।।४।।
राजन् ! धनादि सम्पत्तियों का उपभोग न जाननेवालों की प्राप्त हुई भी सम्पत्तियाँ उसप्रकार नष्ट होजाती हैं जिसप्रकार श्रेष्ठ हाथियों की सूंड पर स्थित हुई क्षुद्र घण्टिकाएँ तृण-आदि की रस्सियों के बन्धनों के बिना नष्ट होजाती है। अर्थात्-शिथिल होकर जमीन पर गिर जाती है।
भाषार्थ—प्रस्तुत नीतिकार* ने कहा है कि लोभी का संचित धन राजा, कुटुम्बी या चोर इनमें से किसी एक का है। बल्लभदेव विद्वान् ने लिखा है कि पात्रों को दान देना, उपभोग करना और नाश होना, इसप्रकार धन की तीन गति होती है। अतः जो व्यक्ति न तो पात्र दान करता है और न स्वयं तथा कुटुम्ब के भरण पोषण में धन खर्च करता है, उसके धन की तीसरी गति निश्चित है। अर्थात्-उसका धन नष्ट होजाता है। प्रकरण में प्रस्तुत मत्री यशोधर महाराज से कहता है कि हे राजन् ! श्रेष्ठ हाथियों को बन्धन-हीन क्षुद्र घण्टिकाओं की तरह लोभी का धन नष्ट हो जाता है' ॥७६ ।। हे राजन् ! आप अपने घंश को प्रकाशित करने के लिए अकेले दीपक हैं। अर्थात्-अपने माता-पिता ( यशोधू महाराज प चन्द्रमती रानी ) के इकलौते पुत्र हैं, इसलिए आपके पास सापत्लज वर ( दूसरी माता से उत्पन्न हुए पुत्र की शता) नहीं है। इसीप्रकार जब श्राप चारों समुद्रों पर्यन्त पृथिवी के स्वामी है सब आपमें पूथिषी संबंधी शत्रुता भो किस प्रकार हो सकती है ? अपितु नहीं हो सकती ||
१. तथा च सोमदेवरिः-श्रूयते हि किल दूरस्थोऽपि माधवपिता कामन्दकीयप्रयोगेण माधयाय मालती साधयामास 1
२. तथा व सोमदेवरि:-प्रशा स्वमो शस्त्रं कुशल मुखीनो ॥१॥ प्रशाहताः कलिशहता इव न प्रादुर्भवन्ति भूमिमतः ॥२॥
३. तपा च गुरु:--प्रशासस्त्रममोघं च विज्ञानाद् बुद्धिरूपिणी । तया इता न जायन्ते पर्वता इस भूमिपाः ॥१॥ ४. दीपफाटेकार । नीतिमायामृत (भाषाटीका-समेत) पृ. ३०६-३८७ (युदसमुश) से संकलित--सम्पादक ५. तया च सोमदेवरिः--कदर्यस्यार्थसंग्रहो राजदापादतस्कराणामन्यतमस्य निधिः ॥१॥
६. तथा च वल्लभदेवः-दानं भोगो नास्तिनो गतयो भवन्ति वित्तस्य । यो न ददाति न भुरके तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥१॥ नौतिवाक्यामृत ( भागटीका-समेत ) पू. ४८ से संकलित-सम्पादक
५. उपमालंकार। 4. हेतु अलवार व आक्षेपालबार ।