Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीय आश्वासः
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इति वन्दिन्वोक्तीः समाकयतो विजयो जसराज्यस्याज्यापेक्षां दर्पणनिरीक्षणं च कुर्वतः तस्य यशोर्धपवितवनम
संच हस्तेनावलम्ब्यलोक्य च स मे तातः किजैवमचिन्तयत्'प्रतिनिभवषिनासोर पास केतु प्रसानः सुरससुखसरोजोकोदनीहारसारः । मदनमदविनोदानन्दकन्दायम प्रशमिदण्डम्बर: केश एपः ॥ ९८ ॥ करणकरिणा पत्र प्रदारणयेणवो हृदयहरिणस्येहाभ्वंसप्रसाधनवागुराः । मनसिजमनोभङ्गासङ्ग चितामसितागमाः शुचिरुचिवशाः केशाः पुंसां यमोत्सवकेतवः ॥ ९९ ॥
इन्द्रादातिवलोकितै दुग्धच तैः स्त्रीदशनच्छदामृतैः । सक्ष सहावा सरसाधने जने मित्र चित्रं यदयं शुचिः कचः ॥१००॥ अरावलीत तुर्मनसिजचिताचक्रम सिर्त यमपालकीडासरणिसलिलं केशमिक्तः ।
महामहे पुंसां विरुजाजासमछ प्रियालोकप्रीतिस्थितिविश्सये पत्रकमिदम् ॥ १०१ ॥
तत्पश्चात् मेरे पिता ( यशोर्य महाराज ने ) उसे अपने करकमल पर स्थापित करते हुए देखा और मिश्रय से निम्नप्रकार प्रशस्त विचार किया
'यह श्वेत केश बुद्धि रूपी लक्ष्मी के विनाश हेतु उत्पात-केतु (नवम मह) सरीखा है । अर्थात् जिस प्रकार नवम के उदय से लक्ष्मी नष्ट होती है उसीप्रकार बृद्धावस्था में वे केश हो जाने से बुद्धिरूपी लक्ष्मी हो आती है एवं यह (श्वेत केश) स्त्रीसंभोग सुखरूप कमल को नष्ट करने हेतु स्थिर प्रालेय (पाला) जैसा है। अर्थात् — जिसप्रकार पाला पड़ने से कमल समूह नष्ट होजाते हैं उसीप्रकार वृद्धावस्था में श्वेत केश हो जाने से वृद्ध मानव का स्त्री-संभोग-संबंधी सुख भी नष्ट होजाता है। इसी प्रकार इस श्वेत केश की शोभा, उस सुखरूप वृक्ष की जड़ को घूर-चूर करने के लिए गिरते हुए विस्तृत बिजली दंड- सरीखी हैं, जो कि कामदे के वर्ष से उत्पन्न हुए स्त्रीसंभोग - कौतूहल से उत्पन्न होता है। अर्थात् जिसप्रकार बिजली गिरने से वृक्षों की जड़ें घूर-चूर होजाती हैं, उसीप्रकार सफेद बाल होजाने से चीणशक्ति बृद्ध पुरुष का स्त्री-संभोग - संबंधी सुख भी चूर-चूर ( नष्ट ) होजाता है ' ॥ ६८ ॥ चन्द्र- सरीखे शुभ्र मानवों के केश इन्द्रिय-समूह रूप हाथियों के मद की अधिकता नष्ट करने के लिए बाँस वृक्ष सरीखे हैं और मनोरूप मृग की चेष्टा नष्ट करने के हेतु बन्धन-पाश हैं । अर्थात् - जिसप्रकार बन्धन करनेवाले जाल हिरणों की चेष्टा ( यथेच्छ विहारभावि ) नष्ट कर देते हैं उसीप्रकार सफेद बालों से भी इन्द्रिय रूप हरिणों की चेष्टा ( इन्द्रियों की विषयों में यथेच्छ प्रवृति) मष्ट होजाती है एवं ये, कामदेष की इच्छा भङ्ग करने के लिए चिता भस्म है। अर्थात्--- जिसप्रकार चिता की भस्माधीन हुए ( काल का लित ) मानव में कामदेव की इच्छा नष्ट होजाती है उसीप्रकार सफेद बाल होजाने पर वृद्ध पुरुष में कामदेव की इच्छा (रतिविलास ) नष्ट होजाती है । इसीप्रकार ये श्वेत बाल, यमराज की महोत्सव - ध्वजाएँ हैं । अर्थात्-जिसप्रकार ध्वजाएँ महोत्सव की सूचक होती हैं उसीप्रकार ये श्वेत बाल भी मृत्यु के सूचक हैं ||६|| क्योंकि जब यह मानव कुन्दपुण्धसरीखी उज्वल कमनीय कामिनियों की कटाक्ष-विक्षेप पूर्वक की हुई तिरछी चितवनों के साथ और दुग्ध - जैसे शुभ रमणियों के रूप अमृत के साथ निरन्तर सहवास-रूप प्रेम की प्रार्थना करता है तब उसके केश श्वेत होजाने में आश्चर्य ही क्या है ? कोई आश्चर्य नहीं ||१००|| श्वेत केश के बहाने से मानों-यह, वृद्धावस्था रूपी लता का सन्तु सरीस्या है। अथवा नष्ट हुए कामदेव के चिता ( मृतकाग्नि ) मण्डल की भस्म - जैसा है। अथवा यह श्वेत केश के बहाने से मृत्यु-रूपी दुष्ट हाथी के कीड़ा करने की कृत्रिम नदी काल जल ही है । अथवा पुरुषों को मूर्च्छित करने के हेतु विषवृक्ष का विशाल जड़-समूह ही है ।
१. रूपकालंकार । २. रूपकालंकार | ३. हेतु व आपालंकार ।