Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीय आवास:
अपि च । मशस्य जन्तोः पसितारेक्षणं भवेन्मनोभतेन धीमतः । संसारमा जगी विजृम्भणप्रसान्तिप्तीमाबिकुरा हि पाण्डुराः ॥ १०३ ॥ मुक्तिश्रियः प्रणयवीक्षणजालमाः पुंसां चतुर्थपुरुषार्थप्ररोहाः । निःश्रेयसामृतरसागमनादूताः शुक्काः कबा ननु तपश्णोपदेशाः ॥ १०४ ॥
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वदनु संजातमिवैवसंवेदनहृद्वयः सविधतर मिरेक्साभ्युदयः सचरिलोकलोचनचन्द्रमाः पुमरिमाः विश्व शीकसारा सस्मार संसारसागरोचरणपोतपात्रदशा द्वासाव्यनुप्रेक्षाः ।
तथाहि ।
राज्य जीवित पहिरन्स रेशे रिक्ता विशन्ति मचतो अयन्त्रकरपाः ।
एको रति यूनि महस्यणौ व सर्वकषः पुनश्यं दत्तले कृतान्तः ॥ १०१ ॥
I
श्रथाश्वेव केशरूप अकुरों का दर्शन, विवेकहीन आरणी को ही मानसिक कष्ट देता है न कि तत्वज्ञानी को । क्योंकि उसके मानसिक क्षेत्र में निम्न प्रकार की विचारधारा प्रवाहित होती है। "ये श्वेतकेश सांसारिक तृष्णा रूपी कालसर्पिणी के विस्तार को शान्त करनेवाली मर्यादाएँ है” || १०३|| पुरुषों के ये शुभ केश निश्चय से मुक्तिलक्ष्मी की प्रेममयो चितवन के लिए मरोखे के छिद्र हैं। अर्थात् - जिसप्रकार खियाँ, रोग्षों के छिद्रों से बाहिर के मानवों की ओर प्रेम-पूर्ण चितवन से देखती हैं उसीप्रकार वृद्धावस्था में शुत्र केश होजाने से विवेकी वृद्ध पुरुष मुक्तिरूपी लक्ष्मी की प्राप्ति के उपायों में प्रवृत्त होते हैं, जिसके फलस्वरूप मुक्तिलक्ष्मी उनकी ओर प्रेमपूर्ण चितवन से देखती है । एवं ये, मोक्षरूप वृक्ष के डर हैं। क्योंकि श्वेत केश बृद्धपुरुष को मोक्ष पुरुषार्थं रूप कल्पवृक्ष की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं। इसीप्रकार ये मोक्षरूप अमृत-धारा प्रवाह संबंधी आगमन के अप्रवृत ( प्रथम संदेश लेजानेवाले दूत ) हैं तथा ये दीक्षा महया के शास्त्र हैं, क्योंकि इनके देखने से तत्वज्ञानी पुरुष दीक्षा धारण करने में तत्पर होते हैं ||१०४॥
तत्पश्चात् — श्वेत केशरूप अकुर-दर्शन के अनन्तर -- जिसके हृदय में संसार, शरीर और भोगों से fees बुद्धि उत्पन्न हुई है, और जिसका मोक्ष प्राप्ति रूप फल निकटवर्ती है एवं जो सदाचारी पुरुषों के नेत्रों को प्रमुदित करनेके लिए चन्द्र-समान है, ऐसे यशोर्घ महाराज ने ऐसी बारह भावनाओं का, ओ कि अठारह हजार शील के भेदों में प्रधान और संसार-समुद्र से पार करने के लिए जहाज की टिकाओं सरीखी हैं, चिन्तन किया।
अनिस्पभावना—ये उच्छ्वास वायुएँ रिहिट की घरियों की माला सरीखी है। अर्थात्-जिसप्रकार रिहिट की परियाँ कुएँ आदि जलाशय से जलपूर खींचकर पश्चात् उसे जमीन पर फेंककर खाली होजाती हैं और पुनः जलराशि के प्रहणार्थं फिर उसी जलाशय में प्रविष्ट होजाती है उसीप्रकार ये स्वसंवेदनप्रत्यक्ष से प्रतीत होने वालीं श्वासोच्छवास वायुएँ भी शरीररूपी जलाशय ( कुधा आदि) से जीवन ( आयुष्य ) रूपी जल खींचकर तदनन्तर उसे बाहिर फेंककर खाली होजाती हैं, तत्पश्चात् पुनः शरीर के मध्य संचार करने लगती है। अर्थात्- -इस प्रकार : से आयु क्षण-क्षण में क्षीण होरही है एवं दावानल अग्नि- सरीखा यह यमराज बृद्ध, जवान, धनी व निर्धन पुरुष को नष्ट करने के लिए एकसा उद्यम करता है। अर्थात् — दावानल अभि-जैसा इसका प्राणिसंहार विषयक व्यापार अद्वितीय है, यत्पूर्वक एकसा उद्यम करता है ॥१०५॥
१. रूपकालङ्कार । ६. रूपकालङ्कार । १. रूपकालङ्कार । ४. उपमालंकार |