Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये परिजनं च भगक्त: समस्त तस्कन्धोरणसमर्थमतिप्रसरस्य संयमवरस्य महर्षेः सनिकर्षे ममोजसामजमदमहोदधितरसंसमिष व्यनियमपहायाभिलपिसमाधविश्व ।
सइन्धरेगुभम महादेच्या पागनागस्थ तुरगस्य प्रधानुकलात्मन्यहनि विहितगणकाद्वान: प्रतापवर्धनः सस्थपसिः सेनापतिः परिकल्पितसकलपट्टबन्धोत्सवोपकरणसंभारः शुभसंरम्भसारः पुण्यपानीपपूतोरान्ताश्रमालमविप्रायाः सिप्रापास्तीरतमनविराजमानहरितः सरित: फूले कमनीयली पयोक्तलक्षणायां प्राप्रवणायां च भुवि समं समाचरितमहापाथीप्रचारेण साखानगरेपानेकपक्तिमेतदुचिससिविचित्रवस्त्रोभरपनीतापमभिषेकमण्डपममेकतोरणमङ्गवैदिकावासविभक्तकक्षान्त समि कार्य वित्तप्य, दिशि दिशि निवेशिताशेषनरेश्वरशिविरः सपरिवारः समाहृय गजवाशिवायोरभिट्टसर्वशमुखतासमहामा शालिहोत्रं च महासाधकम् दुःखी व मेग ( यशोधर राजकुमार) राज्याभिषेक श्रवण कर सुखी होरहा था और विशेष प्रेम प्रकट करनेवाले कुटुम्बीजनों को बुलाकर, मुझे युवराज-पद पर स्थापित करने की तथा मेरा राज्यपट्टवन्ध-महोत्सव और विवाहमहोत्सव करने की आज्ञा दी। इसके अनन्तर उन्होंने भगवान ' ( इन्द्रावि द्वारा पूज्य ) व समस्त द्वादशाह-शास के झान से प्रौढ़ प्रतिभाशाली 'संयमधर' नामक महर्षि के समीप जाकर ऐसे केश-समूह का, जो ऐसे मालूम पड़ते थे-मानों-कामदेवरूपी हाथी के मदरूप महासमुद्र की तरङ्ग पक्ति ही है, पंचमुष्टिपूर्वक लुबन करके जैनेशी दीक्षा धारण की।
सत्पश्चात् ऐसे 'प्रतापवर्द्धन' नाम के सेनापति ने दूसरे दिन निम्नप्रकार कार्य सम्पन्न किया, जो वास्तुविधा के विद्वानों से सहित था। जिसने मेरी और अमृतमती महादेवी के राज्यपट्ट-( मुफुट) बन्धसंबंधी और हाथी व घोड़े के उत्सव-संबंधी अनुकूल दिन में ज्योतिषियों को बुलाया था। जिसने राज्य पट्ट बाँधने के महोत्सष-संबंधी उपकरण-समूह एकत्रित कर लिया था और जो माङ्गलिक प श्रेयस्कर कार्यो के अनुष्ठान में अत्यन्त चतुर-प्रवीण था। उसने जलपूर द्वारा तटवर्ती श्राश्रमवासी मामलों को पवित्र करनेवाली व तटवर्ती नवीन वृक्षों से शोभायमान दिशावाली सिप्रानदी के अत्यन्त रमणीक तट-संबंधी, वास्तुविद्या में कहे हुए लक्षणों पाली पूर्वदिशा की सर्वश्रेष्ठ अथवा सुसंस्कृत पृथिवी पर, ऐसा राज्याभिषेक व विवाहाभिषेक के योग्य सभामण्डप व भूमिप्रदेश वनवाया, जो निर्माण किये हुए ऐसे शासानगर (प्रतिनगर-मूलनगर से दूसरा नगर ) के साथ एक काल में वनवाया हुआ शोभायमान होरहा था, जिसमें महावीथियों (पाजारमागों) की रचना कीगई थी। जिसमें (अभिषेक-मण्डप में) नाना प्रकारफे रत्नसमूह जड़े हुए थे। अर्थात-सुवर्णमयी व रसमयी शोभा से सुशोभित था। जो राज्यपट्टाभिषेक व विवाहाभिषेक के योग्य था। जिसने अत्यंत मनोज्ञ बसों के विस्तार से सूर्य का आतप (गर्मी) रोक दिया था। जिसकी निवास-भूमियाँ, बहुत से तोरणों से मण्डित महलों, वेदिकाओं व धनाढ्यों के निवासस्थानों से पृथक पृथक निर्माण कीगई थीं। तत्पश्यात्-अपने परिवार सहित उस प्रतापपर्धन सेनापति ने समस्त दिशाओं में समस्त राजाओं की सेनाएँ स्थापित करते हुए ऐसे 'उद्धताकुश' और 'शालिहोत्र' नाम के क्रमशः हस्तिसेना व अश्व-सेना के प्रधान अमात्यों को, जिनका फुल (वंश ) क्रमशः हाथियों व घोड़ों की सेना का अधिकारी था, बुलाकर कहा
* 'चानुकलेऽहनि' इति क, गः ।
१. 'उक्तं च-ऐश्वर्यस्य समप्रस्य तपसो नियमः श्रियः- वैराग्यस्थाप मोक्षस्य षण्णा भग इति स्मतिः ॥ एवं पर्यविशेषणविशिष्टो भगो विद्यते यस्य स भवति भगवान तस्य भगवतः। संस्कृत टीका से संकलित-सम्पादक