Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीय आश्वासः
जाकिया कि विधाय स भूपति बाहे पोर इति प्रथितं च मम ।
जीवितादपि निखाकमजन्मभागांचेवः परं स्पृहयति स्म पग्रोर्जगाम ॥ ८१ ॥
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पुनम किलमात्मनमोह सुकविकुसुमसरे यमजनप्रवणभूतां नीयमानव्यवस्थाः क्रमेप्पोक्तान शाहसिनामुचङ्क्रमण एक विगद्गदाकापावस्थाः समनुबभूव ।
तथाहि । मुक्तः शुभ्यति मनकेषु लभते मैनाभ्यहस्ते रवि तावस्थागतत्व वक्षसि कुचावन्वेषते व्याकुलः ।
स्वाद निधाय पिसि स्वभ्येन शुन्याननस्तं निष्पोज्य पुनश्च शेदिति शिशोरिव विचित्र स्थितिः ॥८२॥ षु पूर्व रमते गृहीषः स्पृष्टः कपोके व सफेनहास: । पुरोधसां स्वस्थ्यमोज्वारमादाय हस्तेन मुखे दधाति ॥ ८३ ॥ कभी भी याचना करने में तत्पर नहीं हुआ क्योंकि यशोर्घ महाराज की उदारता वश वे ( याचक.) जिनके यहाँ कल्प वृक्ष उत्पन्न हुए हैं वैसे होगए थे। अर्थात् उन्हें प्रस्तुत यशोर्घ महाराज रूप कल्पवृक्ष से यथेष्ट rest वस्तुएँ प्राप्त होचुकी थी ||८|| तत्पश्चात् यशोध महाराज ने मेरी जन्म-क्रिया ( नाल काटना- धादि fafe ) करके मेरा 'यशोधर' इसप्रकार का ऐसा विख्यात नामसंस्कार किया, जिसकी प्राप्ति के लिए हमारे श में उत्पन्न हुए राजाओं की वित्तवृत्ति ऐसे यश के उपार्जन हेतु लालायित रहती थी, जो कि उन्हें अपने जीवन से भी उत्कृष्ट है * ॥८१॥
तत्पश्चात् उस यशोधर कुमार ने निश्रय से ऊपर मुख किये हुए शयन करना, कुछ हँसना, घुटनों के बल चलना, जमीन पर कुछ गिरते हुए संचार करना और अस्पष्ट बोलना इन पांच प्रकार की ऐसी अवस्थाओं का क्रमशः श्रच्छी तरह अनुभव किया (भोगा), जिनकी स्थिति (स्वरूप) बच्चे की अवस्था चरा गूँथी जाने से मनोज्ञ प्रतीत होनेवाली ऐसी प्रशस्त कवि समूह की वाणीरूपी पुष्पमालाओं द्वारा कुटुम्बीजनों के कानों के आभूषणपने को प्राप्त की जानेवाली है। भावार्य ऋषिसंसार अपनी अनोखी काव्यकला-शैली से शिशुओं की उक्त मनोश लीलाओं की मधुर कवितारूपी फूलमालाएँ गुम्फित करता है और उन्हें कुटुम्बी-जनों के
भूषण बनाता है । अर्थात् — कविसंसार कुटुम्बीजनों के श्रोत्र उक्त बाल लीला रूपी फूलमालाओं से चलङ्कृत करता है, जिसके फलस्वरूप उनके मन-मयूर आनंद-विभोर होते हुए उसप्रकार नृत्य करने लगते हैं, जिसप्रकार आकाश में घुमड़ते हुए बादलों को देखकर मयूर हर्षोन्मन्त होकर नाँच उठते हैं। इसप्रकार की कुटुम्बीजनों था पाठक-पाठिकाओं को उल्लासित करनेवाली उक्त प्रकार की बाल लीलाएँ प्रस्तुत यशोधर कुमार द्वारा अनुभव की गई ।
यशोधर महाराज की उक्त वास-लीलाओं का निरूपण - आश्चर्य की बात है कि बच्चे की प्रकृति नानाभाँति की होती है। उदाहरणार्थ- - बचा पालने में रखने से व्याकुल होजाता है और माता के सिवाय किसी दूसरे की हथेली पर प्राप्त हुआ सन्तुष्ट नहीं होता। जब यह पिता की गोद में प्राप्त होता है तब भूख से व्याकुलित होता हुआ उसके ( पिता के) वक्षःस्थल पर कुच (स्तन) दूँ दने तस्पर होता है। पश्चात् षड् अपना अँगूठा मुख में स्थापित कर पीता है, क्योंकि वह समझता है कि इसमें कूभ है। ऐसा करने पर जब उसका मुख दूध से खाली रहता है तब अँगूठे को पीड़ित करता हुआ बार-बार रोता है ||२|| किसी के द्वारा गोदी में धारण किया हुआ बच्चा पूर्व में देखे हुए ( परिचित ) मनुष्यों में रम जाता है - क्रीड़ा करने लगता है। जब कोई उसके गाल छूता है तब वह फेन-सा शुभ्र मन्द दास्य करने लगता है । इसीप्रकार वह ब्राह्मणों द्वारा दिये हुए माङ्गलिक अक्षतों को हाथ से उठाकर अपने मुख में
* 'वशानुगमनमनोहरैः” इति क० ।
१. उपमालंकार 1 २. जाति अलंकार 1 ३. अर्थान्तरन्यास अलंकार