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प्रस्तावना
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हैं (पृ. ८२, ८३ )। अद्वैतवाद की चर्चा में अमृतबिन्दु तथा शुकरहस्य उपनिषत् के वाक्य आये हैं (पृ. १६६ व १८२)। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में महाभारत का एक श्लोक तथा वेदों की उत्पत्ति के विषय में मत्स्यपुराण का एक श्लोक दिया है (पृ.१९७ व ९५) । याज्ञवल्क्य स्मृति से दो श्लोक उद्धत किये हैं जिन में से एक वैदिक विद्याओं की गणना के लिए है, तथा दूसरे में गोदान का महत्व बतलाया है ( पृ. १०१ व ५८) । इस तरह लेखक ने वैदिक साहित्य का विस्तृत परिचय व्यक्त किया है।
वैदिक दर्शनों के जिन मुख्य ग्रन्थों से उद्धरण लिये हैं उन में ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका प्रधान है - इस से बारह पद्य लिये हैं ( पृ० २६१ आदि ) न्यायदर्शन के कुच्छ सूत्र शब्दशः उद्धृत किये हैं (पृ० २३९ आदि ) किन्तु इस दर्शन का विवरण मुख्यतः भासर्वज्ञ के न्यायसार पर आधारित है (पृ० २३९-४०)। वैशेषिक दर्शन में प्रशस्तपादभाष्य के कई वाक्य उद्धृत किये हैं (पृ० १७७,२१६आदि)। प्रशस्तपादभाष्य के टीकाकार व्योमशिव का उल्लेख दिशा द्रव्य के विषय में किया है (पृ० २३२)। मीमांसा दर्शन की चर्चा में कुमारिल के श्लोकवार्तिक के कई पद्य तथा तत्वसंग्रह में लिये हुए कुछ पद्य उद्धृत किये हैं (पृ० २९, ३०, ३८, ३९ आदि)। स्मृतिप्रमोषवाद की चर्चा प्रभाकर की बहती टीका पर आधारित है तथा प्रभाकर के शिष्य शालिकनाथ की प्रकरणपंचिका से एक पद्य लिया है ( पृ० १२४-५, तथा ८०)। वेदान्त दर्शन के अद्वैतवाद तथा भेदाभेदवाद के समर्थक शंकर तथा भास्कर के सम्प्रदायों का उल्लेख कई बार किया है (पृ० ८१, ८२ आदि )। इस दर्शन के अन्य प्रमुख लेखकों में मण्डन मिश्र की ब्रह्मसिद्धि तथा विमुक्तात्मन् की इष्टसिद्धि का उल्लेख किया है (पृ. १५९ व १३८)।
चार्वाक दर्शन के तीन आचार्यों का एकत्रित उल्लेख इस ग्रन्थ की विशेषता है - पुरन्दर, उद्भट तथा अविद्धकर्ण ये वे तीन आचार्य हैं (पृ. ८)। पुरन्दर ने चार्वाक दर्शन का सूत्र ग्रन्थ लिखा था तथा उद्भट
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