________________ है, अर्थात् यह शब्द सुनते ही सुज्ञजनों को विषय की प्रतीति हो सकती है। प्रस्तुत सूत्र के बीस अध्ययन हैं। पहले के दस अध्ययनों में अशुभ कर्म-विपाक का वर्णन है। पिछले दस अध्ययनों में शुभकर्म-विपाक वर्णित हैं। कर्मसिद्धान्त को सरल, सुगम तथा सुस्पष्ट बनाने के लिए आगमकारों ने यथार्थ उदाहरण दे कर भव्य प्राणियों के हित के लिए प्रस्तुत सूत्र में बीस जनों के इतिहास प्रतिपादन किए हैं। जिस से पापों से निवृत्ति और धर्म में प्रवृत्ति मुमुक्षु जन कर सकें। सदा स्मरणीय-जैनागमों में कृष्णपक्षी (अनेक पुद्गलपरावर्तन करने वाले) तथा अभव्य जीवों के इतिहास के लिए बिल्कुल स्थान नहीं है, किन्तु सूत्रों में जहां कहीं भी इतिहास का उल्लेख मिलता है तो उन्हीं का मिलता है जो चरमशरीरी हों या जिन का संसार-भ्रमण अधिक से अधिक देश-ऊन-अर्द्ध-पुद्गलपरावर्तन शेष रह गया हो, इस से अधिक जिन की संसारयात्रा है, उन का वर्णन जैनागम में नहीं आता है। जिन का वर्णन इस में आया है वह चाहे किसी भी गति में हों अवश्य तरणहार हैं। इस बात की पुष्टि के लिए भगवती सूत्र के १५वें शतक का गौशालक, तिलों के जीव, निरयावलिका सूत्र में कालीकुमार आदि दस भाई, विपाकसूत्र में दुःखविपाक के दस जीव इत्यादि आखिर में सभी मोक्षगामी हैं। ___एक जन्म में उपार्जित किए हुए पापकर्म, रोग-शोक, छेदन-भेदन, मारण-पीटन आदि दुःखपूर्ण दुर्गतिगर्त में जीव को धकेल देते हैं। यदि किसी पुण्ययोग से वह सुकुल में भी जन्म लेता है तो वहां पर भी वे ही पूर्वकृत दुष्कृत उसे पुनः पापकर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं, जिस से पुनः जीव दुःख के गर्त में गिर जाता है। इसी प्रकार दुःखपरम्परा चलती ही रहती कर्मों का स्वरूप-कम्मुणा उवाही जायइ-(आचाराङ्ग अ० 3, उ० 1) अर्थात् कर्मों से ही जन्म, मरण, वृद्धत्व, शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख, संयोग, वियोग, भवभ्रमण आदि उपाधियां पैदा होती हैं। कीरइ जिएण हेऊहिं जेणं तो भण्णए कम्म-अर्थात् जो जीव से किसी हेतु द्वारा किया जाता है उसे कर्म कहते हैं। जब घनघातिकर्मग्रहग्रस्त आत्मा में शुभ और अशुभ अध्यवसाय पैदा होते हैं, तब उन अध्यवसायों में चुम्बक की तरह एक अद्भुत आकर्षण शक्ति पैदा होती है। जैसे चुम्बक के आसपास पड़े हुए निश्चेष्ट लोहे के छोटे-छोटे कण आकर्षण से खिंचे चले आते हैं और साथ चिपक जाते हैं, एवं राग-द्वेषात्मक अध्यवसायों में जो कशिश है, वह भाव आस्रव है। उस कशिश से कर्मवर्गणा के पुद्गल खिंचे चले आना वह द्रव्य आस्रव है। आत्मा और कर्म पुद्गलों 18 ] श्री विपाक सूत्रम् . [कर्ममीमांसा