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( १५ )
५ ॥ यह न्यायमतानुसारी मोक्षका वर्णन कीया है. || अब खंडन करते है सो श्रवण करो ||
॥ तिनका मतभी समीचीन नही, सो प्रकार यह है | जब तिनोके मतमे ईश्वरकी इच्छा, प्रयन दोनो नित्य मान्या है तब तिनोंके मतमे न प्रलय और न किसीजी जीवका मोक्ष होना चाहीये.
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६ ॥ और आत्मा नाना है व्यापकभी है जब एसेमान्या है तब स्थूलसूक्ष्मपदार्थों का बाहर भीतर जेद नही होना चाहीये, जो यह वस्तु इसकी है यह इसकी नही. तथा आत्मा नित्य होनेते पूर्वसंचित कर्मोका भेदजी नही होना चाहीये, जो कौनकर्म किसका है कौन किसका नही यह निर्णय ब्रह्मा से भी होना कठिन है. और इस मतमे जबकिसीकी मुक्ति होवे तब तिसके साथ साधन विना सर्वकी मुक्ति होनी चाहीये तथा किसी दुष्कृतक
से एकका नरकपतन होवे तो तिसके साथ स वैका पतन होना चाहीये क्यों जो आत्माको नाना व्यापक मानने से सर्वका मोक्षमे तथा नरकप्रदाता कर्मों में समान संयोग है.
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