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३॥ अब न्यायमतमे मोक्षका वर्णन इस प्रकार करते है सो विस्तारपूर्वक दिखाता हं.तं श्रवण कर. इन देहादिकोंते मै भिन्न हूं एसा ज्ञान जिस जीवको होवे है तिसी जीवकी मुक्ति होती है जिसको एसा ज्ञान नहीं तिसकी मुक्ति नहीं होती; इस कारण सांख्यमत समान न्यायमतमे भी नाना जीव मानेहै; तिन नाना जीवोंमे जब जिस जीवकी मै देहसे भिन्न हूं इस ज्ञानसें देहभ्रांति नाश होवे है तब तिसके रा. गद्वेष मिटजातें है, तिससे धर्माधर्ममे प्रवृत्तिभी नही होती, तिसते फिर शरीरकी प्राप्ति नही होती. लोगसें प्रारब्ध कर्मोका क्षय होताहै तिस कारणते शरीर, त्वचा, नेत्र, रसना, श्रोत्र, घाण, मन, षट् विषयों, षट् ज्ञान,सुख दुःख इन एकविंशति दुःखोंका नाश होता है; यही न्यायमतमे मोक्ष है.
४॥ शरीरको दुःखका कारण होनेते दुःखरूप मान्या है, स्वर्गादि सुखभी नाशके भयते दुःखरूपही है. श्रोत्र इंद्रियको आकाशरूप होनेते नित्यमानते है, और मनकोंभी नित्य मानते है, तिन दोनो श्रोत्र मनका नाश यद्यपि नही होता तथापि मोक्षकालमे करणगोलकका, और त्वचाइंद्रियका विनाश होनेते सुषुप्तिसमान संयोगके अभावते ते श्रोत्र, मन, दोनो दुःखका कारण नही होते.
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