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१ ॐ ॥अथ तृतीय कमलमे न्यायमत मंडन खंडन॥ ॐ
इस न्यायमतमे ईश्वर एक है तथा नित्य है; व्या पक है; संख्या, परिमाण, प्रथक्त्व, संयोग, विभाग, ज्ञान, इच्छा, प्रयत्न इन अष्ट गुणवाला है.तिन अप्टगुणोंमे ज्ञान, इच्छा, प्रयत्न ये तीन गुण नित्य है, बाकी अनित्य है.इस न्यायमतमे जीव नाना है तथा नित्य है, व्यापक है, ज्ञानगुणसे चेतन होता है,स्वतः जड है; और ज्ञान, इच्छा, सुख, दुःख, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार, संख्या, परिमाण, प्रथक्त्व, संयोग, विभाग,इन चतुर्दश गुणवाला है.और न्यायमतम पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुके परमाणु नित्य है; तथा आकाश,काल,दिशा, मन,ये सर्वभी नित्य है.
२ ॥ अब न्यायमतमे बंध ऐस मान है. देहमें जा आत्मत्वबुद्धि है जैसे मै ब्राह्मण हूं मै क्षत्रियशूद्र हूं तिसकारणसे सजातीयमे राग विजातीयमे द्वेष होवे है;तिन रागद्वेषसें धर्माऽधर्ममे प्रवृत्ति होवे है; तिससे शरीरकी प्राप्ति होवे है, तिससे आत्माको दुःखादिक होते है. तिस कारणते जा शरीरमे आत्मत्वबुद्धि है सा आत्मत्वबुद्धि ही संसारका कारणहै, सोई आत्माकों बंध है. ॥
॥ इति बंधवर्णनम् ॥
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