Book Title: Vedant Chintamani
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________________ चनस्वमादिवत्त्वतः // निषिध्यतेऽधिकरणादसत्यत्वंतुवस्तुतः // 34 // स्वमेभुक्त्यंबुपानाभ्यांक्षुत्तृण्वनिवर्त्तते // तदादे / हकतैबंधात्कथंमुच्येतसाधनैः // 35 // तस्मादसत्त्यनैवेदंताद्रूप्यान्नित्यमेवहि // श्रुनिष्वनेकत्रसत्यत्वमुक्तंनान्यथाक्कचित P // 36 // (द्वादशस्कंधे) एतत्केचिदविद्वांसोमायासंमृतिमात्मनः // अनाद्यावत्तितंनृणांकादाचित्कंप्रचक्षते // 37 // सत्यमप्रतिष्ठतेजगदा हुरनीश्वरं // इत्यासुरेषुगणिताअसत्त्यत्वप्रवादिनः // 38 // दृढाहंतापदंदेहंगेहादिममतास्पदं // या दासत्त्यं विजानीयान्नविरज्येतकश्चन // 39 // वैराग्यार्थमसत्त्यत्वंपुराणेषुक्कचिवचित् // अभिप्रेत्यतिरोभावंकुत्रचित्सं तितथा // 4. क्रीडामयेप्रोरस्मिन्संयोगविगमास्पदे // तिरोभाविनिनोरागःकर्त्तव्यःक्षणिकेच्था॥११॥ शेषेणाप्या स्यनित्यत्वंनिश्चितंपस्पशान्हिके // नित्यःकार्योऽथवाशब्दइत्याकारविचारणे // 42 // नित्येशब्दार्थसंबंधइत्येतत्तुवि टण्वता ॥शब्दश्चार्थश्वसंबंधस्त्रयोनित्यानिरूपिताः॥४३॥ एवंसर्वत्रशास्त्रेषुनित्यमेवनिरूपितं आविर्भावतिरोभावाभ्यांमि तथ्याभात्यनित्यता॥४४॥ असच्छास्त्रेष्वनित्यत्वंन्यायादिषुविविच्यते / / सनास्तिक्येषमोहायमनिजिनिर्मितेष्विह // 45 // उत्तरोत्तरसर्गाथमोहनायमनीषिणाम् / / रुद्रादिदैवतैःकश्चिन्मतेषुरचितेषुच // 46 // तादृकूछास्त्राभ्यसनतोश्रांतचित्ताः स्वकर्मभिः // अप्राप्ततत्वाजायंतेनियंतेचमुहुर्मुहुः // 47 // (मार्कंडेये अ०८१ ) ज्ञानिनामपिचेतांसिदेवीभगवतीहि सा // बलादारुष्यमोहायमहामायाप्रयच्छति // 48 // केचिदेवतुवेदार्थप्रसादात्सद्गरोहरेः // विनिश्वित्यभजंतस्तंमुच्यतेप्रा / मवन्त्यपि // 19 // नित्यं स्वरूपमखिलमाविर्भाव्यस्वयंतिरोभाव्य // रममाणमविहतेच्छंदृत्पदकेहीरकंविरचयाच्छं।

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