Book Title: Vedant Chintamani
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ तौसतरूपितः। स्वस्मिन्विलापितेविश्वब्रह्मकमवशिष्यते // 29 // (स्कंध 10) नष्टेलोकेद्विपरार्द्धावसानेमहाभूतेष्वा / वादितंगतेषु // व्यक्त व्यक्तंकालवेगेनयातेभवानेकःशिष्यतेशेषसंज्ञः // 30 // क्रीडार्थमाविष्कृतवान्बहुत्वेच्छःस्वरूप तः // ऊर्णनाभिर्यथातंतूंस्ते हमविकारवान् // 31 // आविर्भावेरतीच्छेवहेतुःश्रुत्यादिसंमतः // यथाकाण्वश्रुतापूर्वरमणा / भावउच्यते // 32 // सर्वेनैवरेमेतस्मादेकाकीनरमतेसद्वितीयमैच्छन्सहैतावानास // एकाकिनोरत्यभावाहितीयेच्छावि / भोरभूत् // वस्तूतोनद्वितीयंतशुद्धाद्वैतस्यवर्त्तते // 33 // इतिसस्वयमेवासरूपनामविभेदतः // अनेकधाथवैचित्र्यंतत्त धर्मतिरोभवात् // 34 // सर्वधर्मतिरोधानात्तद्धर्मस्यैवदर्शनं / अन्यत्रान्यस्यधर्मस्यचेतिभेदोमहानिह // 35 // एवंवि प्रपंचेनस्वात्मनाक्रीडतिप्रभुः // क्रीडार्थमात्मन इदंत्रिजगत्तेतंयतः // 26 // क्रीडामांडमिदंविश्वमित्यादिष्विदमुच्य। एते // ऊर्णनाभिहिरमततंतुभिर्गेहतोऽथवा // 37 // सर्वशक्तेस्तथेच्छातोमूढे नेवदृश्यते // ब्रह्मवैकमिंदसर्ववस्तुतस्तुवि / / चारणे // 38 // यत्रयेनयतोयस्ययस्मैयद्यद्यथायदा॥ स्यादिदभगवान्साक्षात्प्रधानपुरुषेश्वरः // 39 // इत्यादिनाभा गवतेऽखिलस्यब्रह्मतामता॥ एवंचात्माकाय॑मितिसूत्रेऽप्येतन्निरूप्यते ॥४०॥कटकंमद्रिकांहेन कंडलंखंडकान पि॥ हिमत्वनैवगृह्णातियथाबुद्धिस्तदथिनः // 41 // तथाब्रह्मविदोबद्धिर्यत्त्वियतेंददर्शनं / एकस्योक्तंभागवतेतथाजानंतित ई // 42 // (स्कं. 12 अ० 4 श्लो. 30 ) यथाहिरण्यंबहुधासमीयतेनृभिःक्रियाभिर्व्यवहारवर्त्मसु // ए. 1 काण्वशाखीयोपनिषदिबृहदारण्यके पुरुषविधब्राह्मणे.

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103