Book Title: Vedant Chintamani
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________________ LA थे-चिं. 31 RAVIRA मनन्यसौददातदोपगुह्यावसितंसमाहितः // 81 // इतिभागवतेविष्णुपुराणेप्रथमांशके // अक्षरात्मकमेतद्धीत्युक्तमन्य प्र. चस्फुटं // 82 ॥अधिभूतादिभावोयमित्थंगीतासुरुप्यते ॥(अ०८ श्लो०३)अक्षरब्रह्मपरमस्वभावोध्यात्ममुच्यते॥८३ भूतभावोद्भवकरोविसर्गःकर्मसंज्ञितः / / अधिभतक्षरोभावःपुरुषश्चाधिदैवतं / / 84 // योनिर्गणोपिनिगुणधामापिजगत्स सर्जसगणमिदाबेहदात्मैक्यादगणान्कर्वाणोविजयतेवरंणसुलभः // 85 // इतिश्रीवेदांतचितामणोक्षराक्षरपुरुषोत्त मविवेकोनामत्रयोदशंप्रकरणं // 13 // // 5 // // // // // // नमोस्तुज्ञान्य लभ्यायत्येकसुलभाययः॥ प्रकृतिपुरुषकत्वानिर्मातिसगणंजगत् // 1 // सत्वरजस्तमइतित्रिभिा जगद्गुणैः // जीवाश्वत्रिविधादेवास्त्रयस्तत्तन्नियामकाः॥ 2 // ननुस्यान्निर्गुणंब्रह्मस्वयंधामात्मकंतथा // ब्रह्माभिन्नोत्र मकार्यःप्रपंचःसगुणःकुतः // 3 // अत्रोच्यतेगुणामायाकार्याव्यामोहिकाहिसा // जीवानांतादृशीत्तीरात्मकाय्य करो १नास्त्यन्यस्मिन् अनन्यवा सौदभक्तिर्येषांते 2 योवेदनिहितं गुहायामितिश्रुत्यातुल्यार्थमिदं द्वितीयस्कंधेतु ( अ०२ श्लो०१८) हृदो पगुहार्हपदंपदेपदेइतिपाठः अर्हस्यहरे पदंचरणं 3 निश्चितं यदा अवघद्धं आत्मतयागृहोतं 4 विष्णुपुराणस्थोयंचरणः तदेतदक्षरंनित्यंजगन्म निवराखिलमितिपाठश्चश्रीधरस्वामिविष्णुचित्त्यादिभिव्याख्यातः 5 अक्षरब्रह्मणासहजीवस्यैक्यसंपादनात् 6 भगवत्कर्तृकोजीवस्यस्वीयतयां गीकारोवरणं अनेकलभ्यत्वं साधनांतराऽलभ्यत्वोक्तिपूर्वकं यमवैषवृणतेतेनलभ्यइतिश्रावणात् * अविज्ञातं विजानतां क्लियंतियेकवलबीपलब्ध यइत्यादिश्रुतिपुराणवाक्येभक्तिरहितशुष्कज्ञानिभिःपुरुषासमोनलभ्यतेषामक्षरेलयात् 8 भक्क्याहमकयायाझइत्यादिवाक्यैः ९ब्रह्मविष्णुशिवाः

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