Book Title: Vedant Chintamani
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________________ बेचिन्यसंशयं // 6 // यथावल्लोकवासिन्यःकामतत्त्वेनगोपिकाः // अजंतिरमणमत्वाचिकीर्षाऽजनिनस्तथा // 68 // प०१४ श्रीभगवानुवाच // // दुर्लभोदुर्घटवैवयुष्माकंसुमनोरथः // मयानुमोदितःसम्यक्सत्योजवितुमर्हति // 69 // आगा। मिनिविरंचौतुजातेसृष्ट्यर्थमुद्यते // कल्पंसारस्वतंप्राप्यव्रजेगोप्योभविष्यथ // 70 ॥पृथिव्यांभारतक्षेत्रमाथुरेमममंडले // ३४दावनेअविष्यामिप्रेयान्वोरासमंडले // 71 // जारधर्मेणसुमसुदृढसर्वतोधिकं / / मयिसंप्राप्यसर्वेपिकतकत्याभविष्य Lथ / / 72 / / ब्रह्मोवाच // // श्रुत्वैतच्चितयंत्यस्तारूपभगवतश्चिरं / / उक्तकालंसमासाद्यगोप्योभूत्वाहरिंगताः // 73 // स्त्रियोवापरुषाश्चापितद्भावनैवकेशवं // दृदिकत्वागतियांतिश्रुतीनांनात्रसंशयः।। 74 / / तासांपादरजःस्तुत्यं नित्यंदंदाव: सनिअवि // तत्प्राप्यतामनयायांत्यहोगोपिकागति // 75 // नंदगोपव्रजस्त्रीणामतःपादरजोमया // वांछितंपुत्रकाःस म्यक्यद्धिताःश्रुतयोमताः // 76 // श्रुत्वैतदृषयोवाक्यंब्रह्मणःपरमेष्ठिनः // सर्वात्मनाप्रपन्नास्तेश्रीगोपीजनबल्ल // 1 // 77 // इत्युक्तमुत्तरेखिल्येबृहद्वामनसंज्ञके / / प्रभुपादादिभिरिदंसंगृहीतंस निर्णयं // 78 // ऋगादीनामुपनिषत्सुपृथा / नामपूर्वकं // तत्रत्यंवर्ण्यतेसर्वतद्प्यादभिदोदिता // 79 // भाष्यादौश्रीमदाचाय्यदर्शितंप्राभिस्तथा // तन्नित्य लीलावादादावन्यत्रान्यैस्तदीक्ष्यतां // 8 // तद्विष्णोःपरमंपदंसदापश्यंतिसूरयः // दिवीवचक्षुराततं // ऋग्भिनिरूपिते / 34 1 यथेच्छं 2 भक्तिलक्षणं माहात्म्यज्ञानपूर्वस्तसुदृढःसर्वतोधिकः स्नेहोभक्तिरितिभोक्तइतिपंचरात्रोक्तेः 3 श्रुतिरूपादिगोपीनां 4 पुरुषोत्तम प्राप्तिकामनया 5 गोपालभट्टादिकतबहिर्मुखध्वंसादिषुसंगृहीतत्वादादिपदं 6 भगवद्धामवृत्तं 7 तत्रत्यवस्तूनांसाक्षाद्भगवद्रूपत्वात् - -

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