Book Title: Vedant Chintamani
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________________ मच्यतेसंसारात् // 52 // अहैतुक्यव्यवहितायाभक्तिःपुरुषोत्तमे / जनयत्याशुवराग्यंज्ञानंयत्तदहैतकम् // 53 // मांच योऽव्यभिचारेणभक्तियोगेनसेवते // सगुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयायकल्पते // 54 // इत्युक्तोभक्तितोबंधनाशोब्रह्मा त्मबोधनं / / संसारोऽविद्ययाशक्त्यारुतापूर्वप्रहत्तये // 55 // स्वरूपंविस्मरम्मूढोऽन्तःप्राष्विद्रियेतनौ ॥क्रमादध्यास तोवेत्तिदेवदत्तोहमित्यसौ // 56 / / देहसंबंधिगेहादौममत्वेनानुषजते // अहंममात्मकस्तहिसंसारइतिकथ्यते // 5 // सर्वात्मनाप्रटत्तस्यसेवनायांनिरंतरं।। देहादीनांतदीयत्वभावनादहमोहतिः॥५८|तन्मूलिकातुममताविहताऽहंकतेर्हतेः // मामेवयेप्रपद्यन्तेमायामेतांतरंतिते // 59 / / अविद्यानाशइत्युक्तोभक्तानांस्वप्रपत्तितः // संसारकारणलयान्नतस्यपुन रुद्भवः / / 6. // अविद्याकालकर्मादिनवशक्नोतिबाधितुं / एकांतात्येकनिष्ठंजनमेतदतिस्फुटम् // 61 // संसारोमाय यामिथ्याश्रमोमध्यान्तरायरुत् // ब्रह्मज्ञानेजवनिकातन्नाशेब्रह्मविद्भवेत् // 62 // सर्पज्ञानेहतेरज्जज्ञानस्यात्तत्कृतंभय।। नश्येदेवतथैवंदेश्रीभागवतईय॑ते / / 63 // (स्कं. 12 अ० 4 श्लो. 31 // 32 // 33) यथाधनोऽर्कप्रावोऽर्कदर्शितो , द्विविधसेवातः 2 सृष्टचारंभे 3 अन्यथाब्रह्मांशानामित्थंप्रवृत्त्यसंभवादितिभावः 4 स्वरूपाज्ञानमध्यासचतुष्टयंचेतिपंचाविद्यापर्वाणि 5 अंतःकरणे 6 अहंतायाः 7 भगवद्वाक्यं 8 शरणागतितः 9 अविद्यानाशात् 10 तस्यसंसारस्य 11 कर्तृ आदिशब्देनदेशविशेर पादयः 12 एकांतोनिश्चयात्रेति 13 नस्येदेवेत्युत्तरान्वपि 14 सर्पस्थाने अहंता रजुस्याने अक्षरात्माजीवः संसारश्रमनाशेस्वात्मनिमपंचेचाक्षरत्र HEलात्मकतामतीतिः

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