Book Title: Vedant Chintamani
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Page 43
________________ माना पादत्वेनचांशताम् // मंत्रवर्णादितिव्यासःखांशतवतथासति // 39 // वन्हिस्वांशोविस्फुलिंगोडतोदृष्टांतीकतःश्रुत अस्यावयवभूतैस्तुव्यातंकत्स्नमिदंजगत् // 40 // इत्यादिश्रुतिभिर्जीवाःस्वांशाअवयवोक्तितः // क्वाप्यश्रुतंविभिन्नांश त्वंसर्वत्राभिदानयोः॥ 11 // यत्त्वाहमाध्वोवनमालिदासोराश्येकदेशोंशइहास्तुचंद्रात्॥यथाशतांशोगुरुमंडलंस्यादित्य / मयान्यत्रतदप्यदूषि // 42 // यथासौम्येतिमृत्पिडदृष्टांतोऽत्रपराहतः॥ प्रतिज्ञहैकविज्ञानात्सर्वविज्ञानमित्यपि // 43 // अभेदएवश्रुतिषुतत्त्वमस्यादिषूदितः // बंधेद्वतधमोमोक्षेतन्निवृत्तिनिगद्यते // 44 // तैत्तिरीय।।यदायवैषएतस्मिन्नुदरमंतर / / कुरुते॥अथतस्यभयंभवति // बृहदारण्यकोयत्रहिंद्वैतमिवभवतितदितरइतरंपश्यतीत्यायुक्त्वायत्रत्वस्यसर्वमात्मैवाभूत्तत्के नकंपश्येदित्यादि।।तथायोऽन्यांदेवतामुपास्तेऽन्योऽसावन्योऽहमस्मिनसवेदयथापशुः // 45 // निदंतिश्रुतयोद्वैतंदोषोज्ञा तथामहान् // श्रौतंब्रह्मप्रपंचैक्यं घटतेनमतेचते / / 46 // सप्तमस्कंधे ( अ० 9) यस्मिन्यतोयहिचयनयस्ययस्मैयस्मा यथायदुतयस्त्वपरःपरोवा // भावःकरोतिविकरोतिपृथकूस्वभावःसंचोदितस्तदखिलंभवतःस्वरूपम् // 47 // भास्क राणांमतभेदऔपाधिकउदीरितः // अभेदस्त्वंततोजीवोव्यापकोलिंगतोडणुता // 18 // इहापिव्यापिताजीवतयाब सूत्रेषुद्वितीयस्यतृतीयपादेमाहेतिशेषः 3 जीवब्रह्मणोः 3 द्वैतमतेभेदाभेदमतेच 1 छांदोग्येअपिवातमादेशममाक्षोयेनाश्रुतश्रुतंभवत्यमत मतमविज्ञातविज्ञातमिति मुंडकादिषु कस्मिन्नुखलुभगवोविज्ञातेसर्वमिदंविज्ञातस्यादित्यादि 5 निगदेनमतिपाद्यते 6 उच्छेब्दो प्यर्थेअरमल्पमपि HOLअंतरभेदं 7 उपाधिनाशे 8 आणुत्वश्रुतिर्लिगशरीरकृतपरिच्छेदाभिमायेण

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