Book Title: Vedant Chintamani
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Page 61
________________ मश्रियःसोऽस्मादंशतोऽधिकःश्रतः॥२३॥ नभेदोजमवत्सच्चिदानंदा माइक्षरोऽपियत् // पच्छंपक्षिपदार्थान्नविभक्त मिहतत्तथा // 24 // अतोऽक्षरस्यचरणत्वमपिक्कंचिदुच्यते // प्रतिष्ठतिपदात्तस्यप्रोक्तैवोत्तमधामता // 25 // स्वाभिन्न एकांशभूतेसच्चिदानंदधामनि॥आत्मतंत्रःसर्वधर्मासर्वदारमतेविक्षः॥ 26 // भागवते(स्कंध २)नमोनमस्तेस्तषभायसा त्वतांविदूरकाष्ठायमहुःक्योगिनाम् // निरस्तसाम्यातिशयेनराधसावधामनिब्रह्मणिरंस्यतेनमः // 27 // यदाबहीरि सुःस्यात्स्वरूपादक्षरात्मकात् // तिरोभावेनधर्माणांप्रपंचंस जतिक्षरम् // 28 // नन्वक्षरमुपादानंनिमित्तंपुरुषोत्तमः॥ है तदाऽभिन्ननिमित्तोपादानवादःकथं भवेत् // 29 // एवंचेच्छृणुचेद्धेमकुटात्तत्पिडउद्धृतः // सृज्यतकटकायेस्मान्नकूटः / / समवायिक // 30 // ऊर्णनाभिःसृजआलंलालयास्वांशतया। लीलयाऽभन्नकितस्योपादानंसजविष्यति॥ 31 // lals उपक्रम्याक्षरब्रह्म मुंडकेष्वाद्यमुंडके / यद्भूनयोनिपरिपश्यंतिधीराइतीर्यत // 32 // तथाक्षरासंभवतीहविश्वमितिचोच्या ते // तथाक्षराद्विविधाःसोम्य नावाःप्रजायंतेतत्रचैवापियंति // 33 // द्वितीयमुंडकेप्युक्तंतस्मात्सर्वपरात्मकं // अतः पुरुषएवेदंविश्वंतत्रैवपठ्यते // 34 // तदाहुरक्षरंब्रह्मसर्वकारणकारणं / विष्णोर्धामपरंसाक्षात्परुषस्यमहात्मनः॥३५॥ 1 दृदोपगुहार्हपदंपदेपदेइतिभागवतादौर सुवर्णपिंडात् 3 सुवर्णराशिस्तत्कटकादेःसमवायिकारणभवत्येव अतएवसमवायीतिल्लीवप्रयोगः जालस्य एवंचौर्णनाभिवत्परः लालादक्षरं जालवत्मपंचः 5 अक्षरस्यपुरुषोत्तमाभिन्नत्वेनजगतिपुरुषोत्तमोपादानकत्वानपममात् 6 द्वितीका यमुंडकमथमखंडसमानौ 7 सर्वस्यजगतःकारणानांचमहाभूतादीनां

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