Book Title: Vedant Chintamani
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ अतःसमद्रागिरयश्वसर्वेस्मात्स्यंदंतेसिंधवःसर्वरूपाः॥ अतश्चविश्वाओषधयोरसाच्चयेनैषअतस्तिष्ठत्यंतरात्मा|आ नंदादितिरोभावाकीडनार्थपृथक्कृताः // जडाजीवाश्चनिःसंगस्वांतस्थितमधोक्षजं // 77 // तेंदिच्छयानजानंतीतिन / वेदेतिभण्यते / शरीरमितिभेदस्तसृष्टिकालेपिलप्यते // 78 // पृथ्व्यादीनांत्वन्मतेपिस्थलानामेववर्ण्यते / शरीरतात्रेति तननसूक्ष्मेसिध्यतस्तन // 79 // भावत्कौसूक्ष्मदेहीद्वदाभिप्रायगोचरौ // तदायश्चितितिष्ठन्योचितितिष्ठन्नितिद्वयं // // 80 // एवंढयांतत्तुनोक्तंतस्मात्तौश्रुत्यसंमतौ // कारणेतेनजीवानामतंत्रत्वन्मतंत्रयम् // 81 // याऽधारत्वनियम्यत्व व्याप्यत्वैर्दर्शिताभिदा // उपक्रमोपसंहारविचारेसानवास्तवी // 82 // यथाउपक्रमे ( पृ० 614 ) सोब्रवीत्पतंचलं काप्यंयार्शिका श्वयोवैतत्काप्यसूत्रविद्यात्तंचांतर्यामिणमितिसब्रह्मवित्सलोकवित्सदेववित्सभूतविन्सआत्मवित्ससर्ववि दिति तेभ्योब्रवीत्तदहवेद // इत्येकस्यैवविज्ञानात्सर्वविज्ञानमीर्यते // सर्वस्यतदुपादानकत्वेसत्येवसंभवेत् // 83 // एकम पिडविज्ञानाद्विज्ञातस्यात्तुमृन्मयं।एकेनलोहमणिनासर्वलोहमयंयथा // 84 // उपसंहारे (पृ. 622 ) अदृष्टोद्रष्टा / तश्रुतःश्रोताऽमतोमंताऽविज्ञातोविज्ञातानान्योऽतोस्तिद्रष्टानान्योतोस्तिश्रोतानान्योतोस्तिमंतानान्योतोस्ति विज्ञतिषलआ | 1 प्रथमार्थपंचमी कठे रसाश्चेतिपाठात् 2 आदिशब्दादैश्वर्यादीनांजडेचिदंशस्यचतिरोधानं 3 अधस्तादक्षजयस्मात्तं इंद्रियजन्यज्ञानाविषय 4 ब्रह्मेच्छया 5 शरीरत्वकथनेन 6 त्वयास्थलवेनाभिमतानांपृथिव्यबग्निप्रभृतीनां 7 अंतर्यामिब्राह्मणे 8 भवदभिमतौ 9 वाक्यद्वयमेवब्रूयातून पृथिव्यादिवाक्यानि 10 तादृशंवाक्यद्वयंतुनैवोक्तं 11 श्रुतेरविवक्षितं

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103