Book Title: Vedant Chintamani
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Page 51
________________ परत्वंतुनशक्यते // 58 // निर्गुणःपरएवैकस्तदर्थदतिनिर्णयात् // गौणश्वेन्नात्मशब्दादित्यादौतत्सर्वसंमतं // 59 // उ / पादानंसहैतावानासेत्युक्यातदेवहि // तथाऽभिन्ननिमित्तोपादानदृष्टांतपूर्वकं / / 60 // सर्वेषांजडजीवानांततएवैकतः / श्रुतः॥ उद्गमोनतुतद्भिनचिदचिबेहतःक्वचित् // 61 // बृहदारण्यकेदृप्तबालाकिब्राह्मणाख्येचतुर्थाध्यायप्रथमब्राह्मणे D( पृ. 372 ) सयथोर्णनाभिस्तंतुनोच्चरेद्यथाग्नेःक्षुद्राविस्फुलिंगाव्युच्चरंत्येवमेवास्मादात्मनःसर्वेप्राणाःसर्वेलोकाःस / देवाःसर्वाणिभूतानिव्युच्चरंतीति // अनेकोपनिषहुष्टमेतार्कबहुविस्तरात् // नचजीवप्रकरणाद्वाक्यंजीवपरंत्विदं / / 62 // अणुमात्रात्ततःसर्वानुद्गमाल्लिंगबाधनात् // जवेल्लिंगप्रकरणाद्वलिष्ठंपूर्वतंत्रतः // 63 / / सुषुप्तौब्रह्मलीनस्यततउ / // सर्वेषामुद्गमस्तस्मात्पठ्यतेपरमात्मनः // 64 // अथोत्पत्त्यप्ययाधारतमेवोक्त्वातदात्मता। श्राव्यतेतैत्तिरीया / भतभाविनां // 65 // महानारायणोपनिषदि // यस्मिन्निदश्संचविचैतिसर्वयस्मिन्देवाअधिविश्वनिषेदुः॥ तदेवभूतंतदुभन्यमाइदंतदक्षरेपरमेव्योमन्॥(अ०१पा० 4 सू 0 2 3 )प्रतिश्वप्रतिज्ञादृष्टांतानुपरोधादित्यादि।तस्याऽ / जिन्ननिमित्तोपादानतांपाहसूत्ररुत् // अभेदश्रुतयःसर्वाःसंगच्छंतेनचान्यथा // 66 // पुमांश्वप्रकृतिःसूक्ष्मतनूइत्यपिनो आत्मशब्दार्थः 2 ब्रह्मैव 3 महतांमाणलोकादीनांजीवसकाशादृद्मासंभवात् 4 श्रुतिलिंगवाक्यमकरणस्थानसमाख्यानांसमवायेपारदौ ल्यमर्थविप्रकर्षादितिपूर्वमीमांसासूत्रात् 5 जीवस्य 6 ब्रह्मतः 7 समेतिव्योतच 8 जगतःप्रकृतिरुपादानकारणंचानिमित्तकारणंचब्रह्मैव एवमेवस तिएक विज्ञानेनसर्वविज्ञानप्रतिज्ञा यथासीम्यकेनमृत्पिड़ेनसमृण्मयं विज्ञातस्यादित्यादिदृष्टांतश्चनोपरुत्थ्यते

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