Book Title: Vedant Chintamani
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Page 23
________________ वति // रमणेच्छयाबहुविधःकर्वश्चर्यामहाश्वर्याम्।। 76 // // इतिवेदांतचितामणौआविर्भावतिरोभावनामपंचमप्रकH रणसंपत्तिमानम् // 5 // // 5 // // // // // // // // यआविर्भावयत्यत्तिबाह्यांतररतीच्छया। समवाय्ययविरुतस्तस्मैजगवतेनमः॥१॥सर्वत्रवादत्रितयंतदत्रसविस्तरंशास्त्रग / गैरवणि // आरंजवादोथविवर्तवादस्तथातृतीयःपरिणामवादः // 2 // तत्रनित्यंवि नभोवारवादीनांविविच्यते // चतुर्णी यत्रपरमाणुरूपाणांतनित्यता // 3 // कार्यरूपाण्यनित्यानितेषामारंभतोऽभवन्॥ ईश्वरस्तुनिमित्तंवाब्रह्मभिन्नमिदंजग त् // 4 // नतदंशोविभुर्जीवःकालोद्रव्यांतरंचसः // इत्यादिरूपआरंवादस्तार्किकसंमतः // 5 // तदद्वैतश्रुतिशतैःखं डितंमोहनात्मकं / / आचार्यैःप्राक्तनैरत्रनविस्तरभियोच्यते।। 6 / / असत्यंकल्पितंविश्वंभ्रांत्यारज्जुभुजंगवत् // सशांकराणां विवर्त्तवादःप्रागिहदूषितः // 7 // प्राचीनाचाय्यचरणवन्हिवाग्बाधिद्धिते / खंडितोबहुधाशुद्धाद्वैतचंद्रोदयेमया // 8 // सर्वकार्यात्मनायत्रकारणंमृद्दटादिवत् // नानापरिणमत्येषपरिणामःप्रकीर्तितः॥ 9 // विकताविरुतत्वाभ्यांपरिणामो द्विधामतः // विरुतसत्परिणमत्कारणकार्य्यरूपतः॥ 10 // नपुनःकारणात्मत्वं विकतःसोभिधीयते // दुग्धाद्दधियथा जातंपुनर्दुग्धंनजायते // 11 // कार्यात्मनापरिणत्कारणत्वविकारिसत् // पुनःकारणरूपत्वमषोऽविकत उच्यते॥१२॥ नानाभूषादिरूपेणरजतंपरिणामिहि // मध्येतदेवचतिऽपितत्पन:म्याद्विलापने // 13 // असौवेदांतसिद्धांतःशुद्धांत. 1 1 भ्रमवादः विवर्तोत्रमः विरुद्धवर्तनं तदभाववतितत्प्रकारकज्ञानमितियावत.

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