Book Title: Vedant Chintamani
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________________ Top p वे-चिं. प्रियंरुपनामचेत्यर्थपंचकं // आयंत्रयंब्रह्मरूपंमायारूपंततःपरं // 44 // अस्तिभातिप्रियवंत जातंकार्यात्मनेच्छया / सच्चिदानंदरूपस्यव्यारुतिर्नामरूपयोः॥४५॥ससर्वनामासचसर्वरूपइतिकीर्त्यते॥नामरूपेव्याकरवाणीतीच्छास्याभवत्यु रा॥ 46 // विभिद्यरूपमेकैकंशब्दजालाववाचकात् // तत्तद्वाचीनिनामानिव्यवहारायनिर्ममे // 17 ॥सर्वाणिरूपा णि विचित्यधीरइतिपौरुषं // सूक्तंश्रत्यंतराण्येवंतत्कौमैचोपबृंहितं // 48 // सर्वेषांतदधीनत्वात्तत्तच्छब्दाभिधेयता / / / न्येषांव्यवहारार्थमिष्यतेव्यवहर्तृभिः // 19 // अनामरूपतातस्यालौकिकत्वायवर्णिता || माहात्म्यबोधनायैवलौकि I कोऽस्तिघटोयथा // 50 // रूपंनियतमेवास्यतत्तिरोभावशालिच // द्विवाण्येवचनामानिनतथास्येतिनिश्चयः // 51 // व्यारुतिःसृष्टिकालेऽतःपूर्वमव्याकतिस्तयोः // द्वयोब्राँकनिष्ठत्वंबृहदारण्यकेस्फुटं // तद्धेदंतीव्याकतमासीत्तन्नामरू पाभ्यांव्याक्रियतेअसौनामायमिदरूपायमिति // 52 // एतन्मतेसुनिष्पन्नसांकर्यकार्यकारणे // तन्निसत्त्यर्थमा , चाय्य:पदंशुद्धंविशेषितं // 53 // शुद्धाद्वैतपदेज्ञेयःसमासःकर्मधारयः। अद्वैतंशुद्धयोःप्राहुःषष्ठीतत्पुरुषबुधाः॥५४॥ मायासंबंधरहितंशुद्धमित्युच्यतेबुधैः / कार्यकारणरूपंहिशुद्धब्रह्मनमायिकं // 55 // इतिश्लोकत्रयेणात्राद्वैतेशुद्धवि शेषणं // गोस्वामिभिर्गिरिधरैमार्तडेविटतंवके // 56 // अद्वैतेशुद्धताश्रीमद्वल्लभाचार्य्यरूपिते // मतांतरेषुसर्वत्र श्यतेद्वैतमेवयत् // 57 // दुर्मतनिरासकतिनामाचार्याणांहुताशनाख्यानां // अंतःकरणविभूषणसुरपतिरत्नंतमःसमेह त्यंश २शुद्धाद्वैतमार्तडाख्येस्वयंथे 3 नीलमणिः 4 अज्ञानमधंकारंच 5 श्रीकृष्णः india

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