________________
१८
स्ववाइय सुत्त
मार्ग-दर्शक अद्भुत कार्य करके आदर्श स्थापित करने वाला और अति श्रेष्ठ नर रूप निधि का मालिक या अत्यन्त श्रेष्ठ मनुष्यों का आश्रयदाता था। पुरुषों में श्रेष्ठ-प्रधान पुरुषों में सिंह के समान शूरवीर, पुरुषों में व्याघ्र रूप, पुरुषों में आशीविष-सर्प अर्थात् कोप को सफल करने की शक्ति वाला, पुरुषों में सफेद कमल-सुखार्थियों से सेवित और पुरुषों में गंधहस्ति के समान-विरोधी राजा रूप हाथियों का भञ्जक था। अत: वह समृद्ध, दर्पवान् और प्रसिद्ध था। उसके यहाँ अनेकों विशाल भवन, सोने-बैठने के आसन, यान रथ आदि और वाहन अश्व आदि की अधिकता थी। बहुत सारा धन, सोना और रूपा (चांदी) था। वह अर्थलाभ के अनेक उपायों का प्रयोग करने वाला था। उसके यहाँ से बहुत-से व्यक्तियों के भोजन-दान के बाद विविध प्रकार का प्रचुर भोजन-पान बचा हुआ रहता था। उसके अनेक दासी-दार थे और गायें, भैंसें और भेड़ों की बहुलता थी। सब तरह के यंत्र कोश-खजाना, कोठार और शस्त्रागार भरपूर थे।
बलवं दुब्बल-पच्चामित्ते, ओहयकंटयं णिहयकंटयं मलिय-कंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं, ओहयसत्तुं, णिहयसत्तुं, मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं णिज्जियसत्तुं पराइयसत्तुं, ववगय-दुभिक्खं मारिभय-विप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंत-डिंब-डमरं (पसंताहियडमरं) रज्जं पसासेमाणे (पसाहेमाणे) विहरइ।
भावार्थ - उसके पास प्रबल सेना थी। उसने अपने राज्य के सीमान्त प्रदेश के राजाओं या अपने पडोसी राजाओं को दुर्बल बना दिये थे। उसने अपने गोत्र में उत्पन्न विरोधियों का एवं समान आकांक्षियों का विनाश कर दिया था, उनकी समृद्धि का अपहरण कर लिया था, उनके मान को भंग कर दिया था और उन्हें अपने देश से निकाल कर बाहर कर दिया था। अतः उसका कोई भी गोत्रज विरोधी शेष नहीं रहा था। इसी तरह शत्रुओं का भिन्न गोत्रोत्पन्न विरोधियों का भी विनाश कर दिया था, वैभव-धन छीन लिया था, मान भंग कर दिया था, उन्हें देश से बाहर निकाल दिया था, अपने प्रभाव से जीत लिया था और पुनः शिर न उठा सके ऐसी हालत में पहुंचा दिया था। अतः वह दुर्भिक्ष, मारी और भय से मुक्त क्षेम-निरुपद्रव कल्याणमय, सुभिक्षयुक्त और विघ्न राजकुमारादि कृत उपद्रवता से रहित राज्य का शासन करता हुआ रहता था।)
विवेचन - जिसका मातृपक्ष निर्मल हो उसे मुदित कहते हैं। जैसा कि कहा है - 'मुइओ जो होइ जोणिसुद्धो' अर्थात् जिसकी योनी (उत्पत्ति स्थान) निर्मल हो।
मूल में धन शब्द दिया है यहाँ धन चार प्रकार का बतलाया गया हैं- यथा- धनं-गणिम-धरिममेय-परिच्छेद्य-भेदाच्चतुर्धा
गणिमं जाईफल फोफलाइं, धरिमं तु कुंकुम-गुडाई। मेजं चोपड-लोणाई, रयण-वत्थाई परिछेनं॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org