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आभ्यन्तर-तप
अणाउत्तं उल्लंघणे, अणाउत्तं पल्लंघणे, अणाउत्तं सव्विदिय-काय जोग-जुंजणया। से तं अपसत्थकायविणए। ___ भावार्थ - जैसे-१. बिना उपयोग असावधानी से चलना २. ठहरना ३. बैठना ४. सोना ५. लांघना ६. बारम्बार लांघना या कूदना और ७ बिना यतना के सभी इन्द्रियों और काया को प्रवृत्ति में लगाना। यह अप्रशस्त काय विनय है। इन असावधानी की प्रवृत्तियों को छोड़ना विनय है।
विवेचन - अप्रशस्त मनविनय में 'तहप्पगारं मणो णो पहारेज्जा' पाठ आया है। उसकी भलामण अप्रशस्त वचन विनय के लिए भी दी है। अप्रशस्त काय विनय में ऐसी भलामण नहीं दी है, तथापि उसी प्रकार समझ लेना चाहिए, क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र के चौवीसवें अध्ययन की पचीसवीं गाथा से यह बात स्पष्ट होती है। उस अध्ययन में संरम्भादि में प्रवृत्त होते हुए मन, वचन काया को रोकने के लिए समान रूप से पाठ आया है।
से किं तं पसत्थकायविणए ? पसत्थकायविणए एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं। से तं कायविणए।
भावार्थ - प्रशस्त कायविनय किसे कहते हैं ? इसी प्रकार प्रशस्त कायविनय के विषय में कहना चाहिए। यहाँ बताई हुई सातों क्रियाएँ तथा काया सम्बन्धी सभी क्रियाएँ उपयोग पूर्वक करना प्रशस्त कायविनय है। यह कायविनय है। . . से किं तं लोगोवयारविणए ? लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते।
भावार्थ - लोकोपचारविनय किसे कहते हैं ? लोकोपचार-विनय के सात भेद कहे गये हैं।
तं जहा-अब्भास वत्तियं १, परच्छंदाणुवत्तियं २, कजहेउं ३, कयपडिकिरिया .४, अत्त-गवेसणया ५, देस-कालण्णुया ६, सबढेसु अपडिलोमया ७। से तं लोगोवयारविणए। से तं विणए।
भावार्थ - जैसे-१. गुरु महाराज आदि के समीप बैठना २. गुरुजन की इच्छानुसार प्रवृत्ति करना .३. ज्ञानादि के लिए सेवा-भक्ति करना ४. कृतज्ञता से - अपने ऊपर किये हुए उपकारों को स्मरण में रखकर सेवाभक्ति करना ५. वृद्ध - रोगी आदि पीड़ित संयतियों से, उनके सुख-दुःख की बात पूछना या उनकी सारसम्हाल करना ६ देश और काल को जानकर अपने ध्येय को हानि न पहुँचे इस प्रकार से आचरण करना और ७ सभी विषयों में- आराध्य सम्बन्धी सभी प्रयोजनों में-विपरीत आचरण का निवारण करना-अनुकूल बनना। यह लोकोपचार विनय है। यह विनय का स्वरूप है।
विवेचन - लौकिक प्रवृत्ति की सदृशता होने के कारण, इसे लोकोपचार विनय कहा गया है। गुरुओं के समीपवर्ती रहने पर उनके सेवा का योग साधा जा सकता है। गुरुजन की इच्छानुसार प्रवृत्ति करने से अपनी इच्छा का निरोध होता है। स्वच्छन्दता नम्रता में परिणत होती है और गुरुजन
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