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परिव्राजकों का उपपात
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तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ-इत्थिकहा इ वा भत्तकहा इ वा देसकहा इ वा रायकहा इ वा चोरकहा इ वा अणत्थदंडं करित्तए।
भावार्थ - उन परिव्राजकों का स्त्रीकथा, भातकथा, देशकथा, राजकथा और चोरकथा-जिनसे कि स्व-पर को क्लेश हो ऐसी निरर्थक कथाएँ करने का कल्प नहीं है क्योंकि इन कथाओं को करने से अनर्थदण्ड रूप कर्म का बन्ध होता है।
तेसिणं परिव्वायगाणंणो कप्पइ-अयपायाणि वा तउयपायाणि वा तंबपायाणिवा जसदपायाणिवासीसगपायाणिवारुप्पपायाणिवासुवण्णपायाणिवाअण्णयराणिवा बहुमुल्लाणि वा धारित्तए। णण्णत्थ लाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापाएण वा
भावार्थ - उन परिव्राजकों का तुम्बे, लकड़ी और मिट्टी के पात्रों के सिवाय, लोहे, त्रपुक-कथीर ताम्ब, जसद, शीशे, चांदी और सोने के पात्र रखने का कल्प नहीं है।
तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ-अयबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा तंबबंधणाणि.............जाव बहुमुल्लाणि धारित्तए।
भावार्थ - उनके.....लोहे के बन्धन, कथीर के बन्धन, ताम्बे के बन्धन......यावत् किसी भी प्रकार के बहुमूल्य बन्धन वाले (पात्र) रखना नहीं कल्पता है। .. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ णाणाविह-वण्णराग-रत्ताइं वत्थाई धारित्तए। णण्णत्थ एक्काए धाउरत्ताए।
भावार्थ - उन परिव्राजकों को गेरुएँ रंग से रंगे हुए (धातुरत्त) वस्त्र के सिवाय-दूसरे नाना प्रकार के रंगों से रंगे हुए वस्त्र धारण करने का कल्प नहीं है।
तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ-हारं वा अद्धहारं वा एकावलिं वा मुत्तावलिं वा कणगावलिं वा रयणावलिं वा मुरविं वा कंठमुरविं वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुत्तं वा दसमुहियाणंतकं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा के ऊराणि वा कुंडलाणि वा मउडं वा चूलामणिं वा पिणिद्धित्तए। णण्णत्थ एकेणं तंबिएणं पवित्तएणं। ... भावार्थ - उन परिव्राजकों को एक ताम्बे की पवित्रक- अंगूठी के सिवाय, अन्य हार, अर्द्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, मूरवि, कंठमुरवी-कंठला, प्रालम्ब-लम्बीमाला त्रिसरक, कटिसूत्र, दस अंगुठियाँ, कटक, त्रुटित, अंगद, केयूर, कुंडल या चूडामणि-मुकुट पहनने का कल्प नहीं है।
तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ गंथिमवेढिमपूरिमसंघातिमे चउविहे मल्ले धारित्तए। णण्णत्थ एगेणं कण्णपूरेणं।
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