________________
सिद्धों का निवास स्थान
१९५
अधोभाग के विषय में भी इसी प्रकार की कल्पना है। भगवान् ने इन सब कल्पनाओं का निषेध किया है। वास्तविक लोकाग्र कहां है ? इसका उत्तर आगे दिया जाएगा।
अस्थि णं भंते ! सोहमस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति? - णो इणढे समढे। एवं सव्वेसिं पुच्छा-ईसाणस्स सणंकुमारस्स जाव अच्चुयस्स गेविज-विमाणाणं अणुत्तरविमाणाणं।
भावार्थ - हे भन्ते ! क्या सिद्ध, सौधर्मकल्प के नीचे निवास करते हैं? यह अर्थ समर्थ नहीं है।
इसी प्रकार ईशान, सनत्कुमार यावत् अच्युत, ग्रैवेयकविमान और अनुत्तरविमान-सबकी पृच्छा समझना चाहिए। ___ अस्थि णं भंते ! ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? - णो इणद्वे समटे।
भावार्थ - तो क्या भन्ते ! सिद्ध, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है।
से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति?
गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसम रमणिजाओ भूमिभागाओ उड्डे चंदिमसूरियग्गहगणणक्खत्तताराभवणाओ बहूई जोयणाई बहूणं जोयणसयाई, बहूई जोयणसहस्साइं, बहूइं जोयणसयसहस्साइं, बहूओ जोयणकोडिओ, बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उतरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलंगमहासुक्कसहस्सारआणय-पाणयआरणच्चुय तिण्णि य अट्ठारे गेविज-विमाणावाससए वीइवइत्ता विजयवेजयंत-जयंतअपराजियसव्वट्ठ-सिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्व उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालसजोयणाई अबाहाए एत्थ णं ईसीपब्धारा णाम पुढवी पण्णत्ता।
भावार्थ- हे भन्ते ! फिर सिद्ध भगवान् कहाँ रहते हैं?
हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमि भाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और ताराओं के भवनों से, बहुत-से योजन, बहुतसे सैकड़ों योजनों, बहुत-से हजार योजनों, बहुत-से सौ-हजार योजनों, बहुत-से करोड़ योजनों और बहुत-से करोड़-करोड योजनों से ऊपर जाने पर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प, ३१८ ग्रैवेयक विमान-आवास को पार कर, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध महाविमान के शिखर के अग्रभाग से बारह योजन के अन्तर-अबाहा से इस स्थल पर वित्याग्भारा नाम की पृथ्वी है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org