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परिशेष
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परिशेष
'उववाइय' सुत्त के विषय का अन्यत्र वर्णनतपोवर्णनविवाहपण्णत्ती स. २५, उ. ७। स. १३, उ. ८ आदि। उत्तरज्झयण सुत्त अ. ३० ठाणंग सुत्त-विभिन्न 'ठाणों' में यथा-ध्यान वर्णन ठा. ४ उ. १। 'मणविणय' आदि तपों का वर्णन ठा. ७ आदि। समवायंग-सम. १२॥ चार गति के कारणों का वर्णन- ठाणांग ठा. ४, उ. ४। अम्बड और अम्बड के शिष्य- विवाहपण्णत्ती स. १४, उ. ८ निह्नव -
'ठाणंग ठा. ७ परलोक के आराधक-विराधक -
विवाहपण्णत्ती स. १, उ. २ योग-निरोध और 'अफुसमाणगई"
-उत्तरज्झयण सुत्त २९ अ० सिद्ध-स्तवना
- उत्तरज्झयणसुत्त अ० ३६ ।
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