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अम्बड़ परिव्राजक
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अनशन-अनाहार से छेदन किये। छेदन करके अपने अतिचारों की आलोचना की और उनका प्रतिक्रमण किया अर्थात् उन अतिचारों से पीछे हटे। समाधि-शान्ति-चित्त विशुद्धि पाई। समाधि को प्राप्त करके काल के समय में काल करके, ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप से उत्पन्न हुए-वहाँ उनकी दस सागरोपम की स्थिति है। वे परलोक के आराध
अम्बड परिव्राजक
४०- बहुजणेणं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइ-क्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-एवं खलुअम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरेणयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ। से कहमेयं भंते ! एवं!
भावार्थ - हे भगवन्! बहुत-से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार बोलते हैं, इस प्रकार जतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि - 'अम्बड़ परिव्राजक 'कंपिल्लपुर' नगर में सौ घरों में आहार करता है-सौ घरों में निवास करता है तो क्या भन्ते ! यह बात ऐसी ही है?'
गोयमा ! जण्णं से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घर सए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमटे। अहं पिणं गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ।
भावार्थ - हे गौतम ! जो बहुजन इस प्रकार कहते हैं कि अम्बड़ परिव्राजक सौ घरों में निवास करता है यह बात सत्य है। हे गौतम ! मैं भी इस प्रकार कहता हूँ।' : सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ। . भावार्थ - हे भन्ते ! किस कारण से इस प्रकार कहते हैं कि-अम्बड परिव्राजक सौ घरों में आहार करता है और सौ घरों में निवास करता है। - गोयमा ! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं ऊर्ल्ड बाहाओ पगिज्झिय पगिल्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स, सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झ-माणीहिं, अण्णया कयाइं तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गंणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा।
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