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उववाइय सुत्त
भावार्थ - हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप, सभी द्वीप समुद्रों के बिलकुल बीचोबीच सबसे छोटा जम्बूद्वीप, तेलपुये-तैल में तले हुए मालपूये के समान गोल, रथ के पहिये के समान गोल, कमल के. बीजकोश के समान गोल, पूर्णचन्द्राकार के समान गोल आकार वाला, एक लाख-योजन का लम्बाचौड़ा, तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाईस धनुष्य, साढ़े तेरह अंगुल और कुछ अधिक परिधि वाला है।
देवे णं महिड्डीए महजुइए महब्बले महाजसे महासुक्खे महाणुभावे सविलेवणं गंधसमुग्गयं गिण्हइ। गिण्हित्ता तं अवदालेइ। अवदालित्ता जाव इणामेव-त्तिकट्ट केवलकप्पंजंबूहीवंतिहिंअच्छराणिवाएहिंतिसत्तखुत्तोअणुपरियट्टित्ताणंहव्वमागच्छेजा, से णूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ?-हंता.फुडे।
भावार्थ - महा ऋद्धि वाला, महाद्युति वाले, महाबली महायशस्वी महासौख्य का धारक और महानुभाव देव, विलेपन के सुगन्धित द्रव्य से भरे हुए डिब्बे को लेकर खोलता है। खोल कर तीन बार
चुटकी बजाने जितने काल में इक्कीस बार सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की परिक्रमा करके जल्दी आवे तो हे .गौतम ! क्या सम्पूर्ण जम्बूद्वीप उस सुगन्धित द्रव्य से व्याप्त हो जाता है ?-हाँ भगवन् ! सारा जंबूद्वीप उस सुगन्धित द्रव्य से व्याप्त हो जाता है।
छउमत्थे णं गोयमा ! मणुस्से तेसिं घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं जाव जाणइ? पासइ ? भगवं ! णो इणढे समटे। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइछउमत्थे णं मणुस्से तेसिं णिजरापोग्गलाणं णो किंचि वण्णेणं वण्णं जाव जाणइपासइ। एए सुहमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता।
. भावार्थ -हे गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य उस सुगन्धित द्रव्य को क्या जानता है ? देखता है ? हे भगवन् ! यह संभव नहीं है। हे गौतम ! इसी कारण से कहा है कि-छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरित हुए पुद्गलों के वर्णादि को नहीं जानता है, नहीं देखता है। क्योंकि वे पुद्गल सूक्ष्म होते हैं।
समणाउसो! सव्वलोयं पि य णं ते फुसित्ता णं चिटुंति। भावार्थ - और हे आयुष्मन् श्रमणो ! वे पुद्गल सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करके स्थिर रहते हैं।
केवलि समुद्घात का कारण कम्हा णं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्घायं गच्छंति?
भावार्थ - हे भगवन् ! केवली किस कारण से समुद्घात करते हैं अर्थात् आत्म-प्रदेशों को फैलाते हैं ? - किस कारण से फैले हुए आत्म-प्रदेशों की स्थिति को प्राप्त होते हैं ?
विवेचन-प्रश्न-केवली भगवान् केवली समुद्घात जानबूझ कर करते हैं या स्वाभाविक हो जाती है ?
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