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उववाइय सुत्त
नहीं किन्तु मध्यम गति से उच्चारण करने में जितना समय लगे उतने समय तक शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं।
प्रश्न - शैलेशी अवस्था किसको कहते हैं. ?
उत्तर - शैल का अर्थ हैं पर्वत और ईश का अर्थ है स्वामी अर्थात् पर्वतों का स्वामी। जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत सब पर्वतों से ऊँचा है अर्थात् वह एक लाख योजन का ऊँचा है इसलिए उसे शैलेश कहते हैं, वह अडोल और अकम्प है, प्रलय काल की हवा और तूफान भी उसे कम्पित नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार केवली भगवान् भी जिस अवस्था में सर्वथा अडोल और अकम्प हो जाते हैं, उस अवस्था को शैलेशी अवस्था कहते हैं। ____ पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेजाहिं गुणसेढीहिं अणंते कम्मंसे खवेइ। वेयणिज्जाउयणाम-गुत्ते इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ।
भावार्थ - उस शैलेशी काल में पूर्व रचित-शैलेशी अवस्था से पहले रची गई गुण श्रेणी रूप में रहे हुए कर्मों को-असंख्यात गुण श्रेणियों में रहे हुए अनन्त कर्मांशों को क्षीण करते हैं। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चारों कर्मों का एक साथ क्षय करते हैं।
विवेचन - सामान्यतः कर्म, बहु, अल्प, अल्पतर और अल्पतम रूप से निर्जरा के लिये रचे जाते हैं, किन्तु जब परिणाम विशेष से, वे ही कालान्तर में वेद्य कर्म, अल्प, बहु, बहुतर और बहुतम रूप से, शीघ्रतर क्षय करने के लिये, रचे जाते हैं, तब वह रचना-प्रकार 'गुणश्रेणी' नाम से कहे जाते हैं। अर्थात् जहाँ गुण की वृद्धि से, असंख्यात गुणी निर्जरा समय-समय पर अधिक होती है, वह गुणश्रेणी है।
खवित्ता ओरालियतेयाकम्माइं सव्वाहि विप्प-जहणाहिं विप्पजहइ। विप्पजहित्ता उज्जुसेढी पडिवण्णे अफुसमाणगई उड्डे एक्कसमएणं अविग्गहेणं गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ।
भावार्थ - एक साथ क्षय करके, औदारिक, तैजस् और कार्मण इन तीन शरीरों को, अशेष विविध त्यागों के द्वारा त्याग देते हैं। फिर ऋजुश्रेणी-आकाश प्रदेशों की सीधी पंक्ति के आश्रित होकर, अपृश्यमानगति-अस्पृश्यद्गति वाले सीधे एक समय में ऊंचे जाकर, साकारोपयोग-ज्ञानोपयोग में सिद्ध होते हैं।
विवेचन - प्रश्न - मूल पाठ में अफुसमाणगई" शब्द दिया है। इसका क्या अर्थ है ? उत्तर - टीकाकार ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है।
अस्पृशन्ती-सिद्धयन्तरालप्रदेशान् गतिर्यस्स सोऽस्पृशद्गतिः अन्तराल प्रदेशस्पर्शने हि नैकेन समयेन सिद्धिः, इष्यते चतक एव समयः, यएवचायुष्कादिकर्मणां क्षयसमयः स एवं निर्वाणसमयः अतोऽन्तराले समयान्तरस्याभावादन्तराल-प्रदेशानाम-संस्पर्शनमिति।
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